नमस्कार दोस्तों ! स्वागत है आप सभी का आज की इस नयी और मजेदार कहानी में। आज की यह कहानी एक चमगादड़ और नेवले की है। कहानी को पूरा अंत तक पढ़े...
एक जंगल में एक चमगादड़ रहता था। वह हमेशा पेड़ की डाल से उल्टा लटका रहता था। एक दिन वह बहुत थका हुआ था। थका होने के कारण वह अचानक पेड़ से गिर गया।
उसी पेड़ के नीचे बिल बनाकर एक नेवला रहता था। नेवली ने कुछ गिरने की आवाज सुनी तो वह बिल से बाहर आया। चमगादड़ उड़ पाता उसके पहले ही नेवले ने उसे पकड़ लिया।
लेकिन चमगादड़ घबराया नहीं। उसने नेवले से कहा , " प्यारे नेवले , मुझे मत मारो। "
नेवले ने कहा , " मैं तुम्हें क्यों न मारू ? पंछी हमारे शत्रु होते हैं। मैं तुम्हें नहीं छोडूंगा। "
चमगादड़ बहुत चतुर था। उसने साहस जुटाकर कहा , " लेकिन मैं पंछी नहीं हूं। मैं उड़ सकता हूं , क्या इसीलिए आप मुझे पंछी मानते हो। मुझे देखिए मैं चूहे जैसा नहीं लगता हूं। वास्तव में मैं चूहा ही हूं। "
नेवले ने चमगादड़ को देखा और कहा , " हां , तुम तो चूहे जैसे ही लगते हो। जाओ मैं तुम्हें जाने देता हूं। नेवले ने चमगादड़ को छोड़ दिया।
एक दिन सभी चमगादड़ उड़ रहे थे। अचानक वही चमगादड़ फिर से जमीन पर गिर गया। वहां एक दूसरा नेवला बैठा था। नेवले ने चमगादड़ को पकड़ लिया।
लेकिन चमगादड़ जरा भी घबराया नहीं। उसने कहा , " कृपया , मुझे मत मारो। " नेवले ने कहा , " मैं तुम्हें क्यों न मारू ? "नेवले और चूहे एक - दूसरे के शत्रु होते हैं। वह हमें बहुत तंग करते हैं। मैं तुम्हें जरूर मारूंगा।
चमगादड़ ने धैर्यपूर्वक कहा , " लेकिन मैं तो चूहा नहीं हूं। मैं बिल में नहीं रहता हूं , मैं तो पेड़ों पर रहता हूं। मैं पंछियों की तरह उड़ सकता हूं। वास्तव में , मैं पंछी ही हूं। "
नेवले ने देखा। वह सोचने लगा और बोला , " हां हां , तुम लगते तो पंछी ही हो। जाओ , मैं तुम्हें छोड़ देता हूं। " और इस तरह चमगादड़ साहस और निर्भयता से अपनी जान बचा लेता है।
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