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चोर राजा | Chor Raja | Hindi Kahaniya | Moral Stories | Bed Time Story | Hindi Kahani

चोर राजा | Chor Raja | Hindi Kahaniya | Moral Stories | Bed Time Story | Hindi Kahani
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Apr 26, 2023
हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई मजेदार Series में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है - " चोर राजा "  यह एक Moral Story है। अगर आप भी Hindi Kahaniya, Moral Story in Hindi या Bed Time Stories पढ़ने का शौक रखते है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।

बुद्धिमान राजा | Buddhiman Raja | Hindi Kahaniya | Moral Stories | Bed Time Story | Hindi Kahani

Chor Raja| Hindi Kahaniya| Moral Stories | Bed Time Story | Hindi Kahani | Hindi Story 



 चोर राजा 

बसंतपुर गांव में रतन नाम का एक आदमी रहता था। रतन वैसे बहुत बुद्धिमान था। बुद्धिमान होने के बावजूद उसके पास कोई काम न था। 

वह रोज किसी न किसी के पास जाकर काम मांगता परंतु उसे कोई भी अपने यहां काम नहीं देता था। एक दिन रतन राशन की दुकान पर जाकर दुकानदार से कहता है।

रतन," भैया, कोई काम हो तो दो। मेरे पास कोई काम नहीं है जिसके कारण मेरा परिवार कई बार भूखा रहता है। "

दुकानदार," रतन, तू बहुत समझदार है। तू कोई पढ़ा लिखा वाला काम कर। यह मजदूरी का काम क्यों कर रहा है ? अब जा काम - धंधे के समय खोटी मत कर। "

रतन को बुरा तो लगता है पर वह दुकान से जाते हुए मन ही मन सोचता है। 

रतन (मन में)," चलो छोड़ो। इन्हें कभी ना कभी मेरी अहमियत तो समझ आएगी। "

काम नहीं मिलने के कारण वह बहुत परेशान रहने लगता है। धीरे-धीरे समय भी बीतने लगता है। एक दिन उसकी पत्नी सुनीता उससे कहती है। 

सुनीता," अजी, सुनते हो... तुम्हें कहीं काम नहीं मिल रहा तो आप एक बार राजमहल जाकर राजा जी से विनती करके उन्हीं से काम मांग लीजिए। "

रतन," हां, मैं भी यही सोच रहा हूं। परंतु वहां मेरे लायक कोई काम नहीं मिला या फिर उन्होंने मना कर दिया तो।"

सुनीता," अजी आप ऐसा क्यों सोच रहे हैं ? आप एक बार वहां जाकर तो देखिए। कुछ ना कुछ तो जरूर करेंगे राजा जी। "

रतन," चलो तुम कह रही हो तो मैं चला जाता हूं। "


अगले दिन...
रतन अपने घर से अपना डंडा जिसके पीछे एक छोटी सी लाल रंग की पोटली बांधे रखता था, को लेकर चंद्र नगर की ओर बढ़ता है। 

चंद्र नगर पहुंचने के बाद वह वहां लगे साप्ताहिक घाट और मेले से घूमते हुए राज महल पहुंचता है। महल की भव्यता इतनी कि हर किसी की आंखें चौंडी हो जाए।

रतन (मन में)," अरे वाह ! कितना सुंदर और भव्य महल है। चलो चलता हूं महाराज के पास काम मांगने। " 

रतन," भैया, यह मुख्य द्वार कहां है ? आम दरबार कहां लगा है ? "

सैनिक," बाएं से तीसरा दरवाजा, पर कोई फायदा नहीं। तुम्हारी परेशानियों का वहां सिर्फ मजाक बनेगा। महाराज का नाम तो आप जानते ही हो, खड़क सिंह नाम है उनका। "

रतन," अच्छा... जो भी हो मुझे तो बस अपने काम से मतलब है। "

इतना कहता हुआ रतन वहां से चला जाता है। महल के मुख्य द्वार पर पहुंचने के बाद वह देखता है कि आज राजा ने आम जनता के लिए दरबार लगाया है जिसमें राजा लोगों की समस्या सुन मजाक बनाने लगता है। 

हालांकि लोग राजा के पास आना नहीं चाहते थे परंतु उनकी परेशानी के हल के लिए उन्हें राजा के पास आना ही पड़ता था। 

लोगों की सुनवाई की कतार में रतन भी लग जाता है और अपनी बारी का इंतजार करने लगता है। थोड़ी देर बाद रतन की बारी आती है। 

रतन," प्रणाम महाराज ! मेरा नाम रतन है। मैं आपके राज्य के गांव बसंतपुर से हूं। मुझे अपने परिवार के भरण पोषण और निर्वाहन के लिए रोजगार की आवश्यकता है। मुझे आपके यहां कोई काम मिल जाएगा तो बहुत मेहरबानी होगी। "

राजा," अच्छा... तुम्हें काम की तलाश है। काम तो मिल जाएगा पर उसके लिए तुम्हें किसी प्रकार का धन नहीं मिल पाएगा। " 

रतन," लेकिन महाराज... बिना धन के में कैसे काम कर पाऊंगा ? "

राजा," तुम मेरे दिए हुए काम को मना कर मेरी अवहेलना कर रहे हो। जानते नहीं हो मूर्ख खड़क सिंह नाम है हमारा... खड़क सिंह..? सैनिको इसे बंदी बनाकर 10 दिनों तक काल कोठरी में डाल दिया जाए। "

रतन," महाराज, मुझे माफ कर दिया जाए। मेरी बात का आप गलत मतलब निकाल रहे हैं। "

इतने में सैनिक आकर उसे कारागार की तरफ घसीटकर ले जाते हुए उसे काल कोठरी में डाल देते हैं। रतन अंदर बैठे-बैठे रोता है। 

रतन," यह सब मेरे साथ ही क्यों होता है ? इसमें मेरी क्या गलती है ? मैं तो केवल काम मांगने आया था। "

10 दिन किसी ना किसी तरह बीत जाते हैं। उधर बसंतपुर में उसके बच्चे और पत्नी भी परेशान होते हैं। 

ग्याहरवें दिन जब उसे छोड़ा जाता है तो रतन सोचता है। 


रतन (मन में)," अब मैं चुप नहीं रहूंगा। इन सबको मैं सबक सिखाकर रहूंगा। इस खड़क सिंह को इसके सिंहासन से न उतार फेंका तो मेरा नाम रतन नहीं। "

फिर रतन घर लौटकर अपनी पत्नी सुनीता को वह सब कुछ बताता है कि उसके साथ चंद्र नगर में राज महल में क्या-क्या हुआ ? 

रतन," अब मैं उन सभी को सबक सिखाना चाहता हूं जिन्होंने मुझे नाकाबिल समझा और बिना मतलब कि मुझे काल कोठरी में डलवा दिया। "

सुनीता," सबक सिखाने में मैं भी आपके साथ हूं परंतु कोई गड़बड़ तो नहीं होगी। "

रतन," सुनो... तुम मुझ पर भरोसा रखो। मैं सब संभाल लूंगा। पर मैं जो बताऊं वह तुम्हें करना होगा। "

सुनीता," जी, ठीक है। "

रतन," तुम बच्चों को अपने भाई को इंद्र नगर से बुलवाकर उसके साथ मायके भेज दो। "

सुनीता रतन की बात सुनकर यही करती है और बिरजू से कहती है। 

सुनीता," सुन... बच्चों का ख्याल रखना और साथ ही मां और बाबू जी से कहना कि मेरी चिंता ना करें। "


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बिरजू," जी, ठीक है दीदी। "

बिरजू बच्चों को लेकर चला जाता है। दूसरे दिन रतन और सुनीता बात कर रहे होते हैं। 

रतन," तुम आज जल्दी काम करके आराम कर लेना। तुम्हें रात भर जागना होगा। साथ ही बहुत सारा काम भी करना होगा। "

सुनीता," जी, ठीक है। पर आप बताओ तो सही मुझे क्या करना होगा ? "

रतन," अरे ! मैंने पहले ही कहा था जो कहूं वही करना होगा। अभी मैं जो कह रहा हूं वही करो। तुम्हें सब समझ आ जाएगा। "

सुनीता और रतन दोनों मिलकर सारा काम निपटाकर रात का इंतजार करने लगते हैं। 


रात का पहर होते ही रतन सुनीता को जगाता है।

रतन," सुनीता, उठो... उठो जल्दी करो। "

 सुनीता (उठते हुए)," जी, कहिए... मुझे क्या करना होगा ? "

रतन," जो रोटियां बची हुई है उसे लेकर आओ और उसे चार हिस्सों में बांटकर आधी तुम रखो और आधी मुझे दो। "

सुनीता ऐसा ही करती है। रोटियां लाकर सुनीता आधी आधी करके आपस में बांट लेती है। दोनों घर से बाहर आ जाते हैं।

रतन," तुम इन कुत्तों को धीरे-धीरे रोटी डालकर गांव के बाहर तक ले जाने की कोशिश करो जिससे कि कुत्ते मुझ पर भौंके नहीं। कुत्तों की आवाज ना होने के कारण कोई भी नहीं जागेगा। "

सुनीता भी बात को समझ गई। वह कुत्तों को रोटी डालकर गांव के बाहर तक ले जाती है। दूसरी तरफ रतन गांव में रहने वाले रमेश की गाय को खोलकर इंद्र नगर के रास्ते पर चलने लगता है। इसके बाद सुनीता भी उसके पास आ जाती है। 

रतन," मैं इस गाय को लेकर तुम्हारे गांव जा रहा हूं। इसे वहां के पशु बाजार में बेच आऊंगा। अगर कोई मेरे बारे में पूछे तो कह देना कि मैं बच्चों का सामान देने तुम्हारे मायके गया हुआ हूं। "

रतन गाय को लेकर इंद्र नगर के पशु बाजार में बेचकर अपने गांव बसंतपुर वापस आ जाता है। 

सुनीता के पास आकर... 
रतन," ये लो भाग्यवान... पूरे 500 रूपये। इन रुपयों को अभी किसी के सामने मत निकालना। "

सुनीता भी हां में सिर हिला देती है। साथ ही वह उस दिन हुई घटना का ब्यौरा रतन को देने लगती है। 

सुनीता," आज सुबह जब किराना दुकानदार रमेश गाय की चोरी होने की वजह से रो रहा था। "

रतन," अच्छा हुआ। उसने भी मुझे काम देने से मना किया था ना। "

अब धीरे-धीरे बसंतपुर गांव के अलावा आस-पास के गांव में भी चोरियां बढ़ने लगी थी। लोग भी परेशान होने लगे थे जिसके चलते आसपास के सभी गांव वाले राजा के पास जाकर चोरियों की शिकायत करते हैं।

आदमी," महाराज... आसपास के सभी गांव में पालतू जानवरों की चोरी होने लगी है। "

राजा," खड़क सिंह के होते हुए चोरी.... अच्छा हम देखते हैं। तुम लोग सभी जाओ। "


लोगों के जाने के बाद राजा अपने मंत्री से बात करता है।

राजा," मंत्री जी... इनके पशु चोरी होने से क्या हमें कोई नुकसान या फायदा है ? "

मंत्री," जी महाराज, पशु चोरी होने से जो पशुपालक हमें पशुओं से होने वाला धन फायदे का कुछ हिस्सा हमें कर के रूप में देते हैं, अब पशु न होने के कारण वह हमें नहीं मिल पाएगा। "

राजा बड़ी दुविधा में पड़ गया। सोचने लगा कि अब वह क्या करें क्या ना करें ? "

राजा," मंत्री जी, आप जांच करवाएं की पशु कहां जा रहे हैं और कौन चोरी कर रहा है ? "

मंत्री," जी महाराज, मैं जल्दी ही चोर को पकड़वाता हूं। परंतु महाराज... मेरे मन में इसके लिए एक रास्ता सूझा है। 

क्यों ना महाराज हम हर गांव में एक बाड़ा बनवा कर वहां जानवरों को रख दें ? देखने के लिए एक चौकीदार रख देते हैं। 

चौकीदार वहीं का स्थानीय हो। जानवरों की रक्षा होती रहेगी। माह के अंत में चौकीदार पशुपालकों से कर लेकर हमें देता भी रहेगा। "

राजा," यह विचार मुझे काफी पसंद आया। ठीक है, इस सूचना को सभी गांव में पहुंचा दो। "

राजा ने सभी गांव में यही आदेश ढोल बजवाकर प्रसारित करवा दिया कि बसंतपुर में जो जो भी चौकीदार बनना चाहता है उन्हें अपना नाम सरपंच के पास लिखवाना होगा।

संदेशवाहक (ढोल नगाड़े बजाते हुए)," सुनो सुनो सुनो... सभी गांव वालों को सूचित किया जाता है कि मवेशियों की रक्षा हेतु एक बाड़ा बनवाया जा रहा है। 

साथ ही एक चौकीदार को भी रखा जा रहा है। जो भी चौकीदारी करना चाहे वह सरपंच के पास अपना नाम लिखवा दे। सुनो सुनो सुनो...। "


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रतन भी अपना नाम लिखवाने जाता है।

रतन," मुखिया जी, मेरा भी नाम लिख दो बड़ी मेहरबानी होगी। "

मुखिया," रतन, पढ़े लिखे होकर भी ऐसा काम करते हो। "


रतन," क्या करें मुखिया जी..? कुछ काम ही नहीं है तो यही सही। "

मुखिया," अब तुम्हें करना ही है तो ठीक है। "

चौकीदारों को भी नियुक्त किया गया जिसमें रतन को भी नियुक्त किया गया। रतन और उसकी पत्नी बहुत खुश हुए। रतन के मन में अभी भी राजा के प्रति गुस्सा भरा हुआ था। 

रतन गांव वालों की तरफ से जो जानवरों मवेशियों के लिए जो चारा आता उसमें से वह थोड़ा चुरा के दूसरे गांव में बेच देता।

दूसरे गांव जाकर...
रतन," तुम्हें मवेशियों के लिए चारा चाहिए ? "

आदमी," चाहिए तो...। "

रतन," ऐसा करो... तुम बाजार भाव से कम दाम में यह चारा ले लो। "

आदमी," ठीक है। "

रतन हर बार किसी ना किसी को चारा बेचकर घर आ जाता।

एक दिन... 
रतन," सुनीता, तुम इन पैसों में से थोड़ा सा हिस्सा अलग निकाल लिया करो। "

सुनीता," निकाल तो लिया करूंगी पर कभी राजा को शक हुआ और उसने हमारे यहां तलाशी ली तो। उसे सच मालूम पड़ गया तो..? "

रतन," उसे कुछ नहीं मालूम पड़ेगा। तुम वो धन मुझे एक पोटली में रखकर दे दो। "

जो पशुपालकों से कर का धन मिलता उसमें से कुछ धन चुरा कर वह राजकोष में कर जमा करवाने जाता था। रतन इस अतिरिक्त धन को जानवरों के बाड़े में छुपा दिया करता था। 

कुछ दिनों तक ऐसा ही चलता रहा। रतन हर माह थोड़ा-थोड़ा धन कम करके राजकोष में जमा किया करता था। 

एक बार कोषाभि पति उसे बोल देता है।

कोसाभि पति," रतन, इस ग्राम के पशुकर का धन दिन प्रतिदिन कम होता जा रहा है। क्या कर रहे हो तुम..? "

रतन," मुझ इससे जितना भी कर मिलता है वह मैं आपको ही लाकर देता हूं। "

इस बार राजा भी सुन रहा होता है। तभी राजा गुस्से में आकर रतन को पकड़ने का आदेश देता है।

राजा," इसे पकड़ लिया जाए। जब तक जांच पूरी ना हो जाए इसे छोड़ना नहीं। यदि कभी इस पर गुनाह सिद्ध हो जाता है तो इसे फांसी की सजा दी जाए। "

रतन," महाराज मुझे अपनी सफाई का एक मौका तो दे दीजिए। "

मंत्री," रुकिए महाराज... हम सुन लेते हैं कि यह क्या कहना चाह रहा है ? "

राजा," हां, रुको इसे बोलने दो। यह क्या कहना चाह रहा है ? "


रतन," महाराज, मैं अपनी बात रखूं इससे पहले मेरी एक शर्त है। "

राजा," बोलो, क्या शर्त है ? "

रतन," यदि मैं बेकसूर सिद्ध हो जाता हूं तो आप मुझे राजा बनाएंगे और मेरी जगह आपको यह सजा मंजूर होगी। "

राजा अपने गुरूर और घमंड में हां कह देता है। 

मंत्री (रोकते हुए)," महाराज, आप ऐसा नहीं कर सकते। "

राजा," मंत्री, राजा आप हैं कि मैं ? "

मंत्री," माफ कीजिए महाराज। "

इतना कहकर मंत्री पीछे हट जाता है। "

राजा," रतन, सिद्ध करो तुमने पशुकर बीच में चुराया नहीं है। "

रतन," महाराज, मैंने धन को चुराया नहीं है परंतु यदि आपको मुझ पर दोष लगाना होगा तो आप लगा ही देंगे। "

राजा," ऐसा है तो यह फैसला यहां के पांच महामंत्री करेंगे। "

रतन," इसके लिए मुझे एक किलो वजन का बर्फ चाहिए। "

राधा," जल्दी ही इसके हाथ में बर्फ लाकर दो। "

रतन के हाथ में 1 किलो बर्फ का टुकड़ा दिया जाता है। रतन बर्फ का टुकड़ा अपने हाथों से दूसरे मंत्री के हाथों में दे देता है। 

दूसरा मंत्री तीसरे मंत्री का हाथ में दे देता है। ऐसा करते हुए वह राजा के हाथ में पहुंच जाता है। तभी रतन कहता है।

रतन," महाराज, रुकिए। "

रतन महाराज के हाथों से बर्फ के टुकड़े का वजन जांचने को कहता है। इसका वजन काफी कम हो जाता है। 

रतन," महाराज, इसमें से लगभग 200 ग्राम वजन कम है तो 200 ग्राम बर्फ की चोरी आपने की है। "

राजा," क्या कह रहे हो तुम ? "

इतने में सैनिक रतन के घर की तलाशी लेकर और गांव वालों से पूछताछ करके राज दरबार में आते हैं। "

सैनिक," महाराज की जय हो ! "

राजा," कहो... क्या खबर है ? "

सैनिक," महाराज, हमने इसके घर की तलाशी ली परंतु कोई अतिरिक्त धन नहीं निकला। साथ ही हम ने गांव वालों से भी पूछताछ की परंतु किसी ने कुछ नहीं बताया। "


रतन," यही तो मैं कहना चाहता हूं महाराज। गांव में किसी का जानवर मर जाता है तो लोग उसका कर नहीं देते हैं। कोई अपना जानवर बेच देता है तो उसका कर भी कम हो जाता है। 

चोरी होने की वजह से लोग जानवर भी कम खरीद रहे हैं जिसकी वजह से लोग कर कम दे रहे हैं। इसके बाद का फैसला मैं आप सब मंत्रियों पर छोड़ रहा हूं। "

मंत्री सोच विचार कर रतन की बात को सच मान लेते हैं। साथ ही राजा के वादे अनुसार उसे दूसरे दिन एक दिन का राजा घोषित किया जाता है।

रतन के राजा बनने के बाद...
रतन," पुराने राजा को बंदी बना लिया जाए और उसे पुराने गलत फैसलों के लिए फांसी की सजा दी जाए। आप क्या कहते हो मंत्री जी..? "

यह सुनकर मंत्री हैरान हो जाते हैं।

मंत्री," रतन महाराज, हमें सलाह का एक मौका प्रदान करें। "

रतन," जी, मंत्री जी... आप सभी मंत्री सलाह कर लीजिए। "

यह सुनकर सारे मंत्री अचंभे में पड़ जाते हैं। इसके बाद सब आपस में सलाह करने लगते हैं। 

पहला मंत्री," पुराने राजा ने कभी हमारे विचार रखने का मौका नहीं दिया। साथ ही पुराने राजा के समय उनकी मनमर्जी के कारण राज्य में कानून व्यवस्था भी सुचारू ढंग से नहीं चल रही है। "


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दूसरा मंत्री," इसी के साथ विदेशी आक्रमण भी बढ़ने का खतरा है । "

तीसरा मंत्री," हां हां, आप सही कह रहे हैं। "

मंत्री," रतन महाराज, आप इन्हें जो भी सजा देना चाहे वह दे दीजिए। हम आपके साथ हैं। "

पुराना राजा फांसी की सजा को माफ करने के लिए गिड़गिड़ाने लगता है। 


राजा," मुझे माफ कर दीजिए। मुझसे गलती हो गई। मैं समझ गया मेरी क्या गलती थी ? मैं अहंकार में आ गया था। "

रतन समझ जाता है और उसे माफ कर अपनी सेना में शामिल कर लेता है। 

साथ ही रतन राज्य में सभी बेरोजगारों को काम दे देता है जिसके कारण सारा राज्य खुशहाल हो जाता है।


इस कहानी से आपने क्या सीखा ? नीचे Comment में हमें अवश्य बताएं।

Pradeep Kushwah

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