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साइकिल चोर
होशियारपुर नामक गांव में गुड्डू अपनी मां विमला के साथ रहता है। विमला ने मेहनत मजदूरी करके गुड्डू का पालन पोषण किया था और गुड्डू भी अपनी मां के साथ मजदूरी किया करता था।
एक दिन गुड्डू काम पर जाने के लिए तैयार हो रहा था। तभी उसकी मां उसके लिए खाना लेकर आई।
गुड्डू," मां, मैं यह खाना नहीं खाऊंगा। "
मां," क्यों..?? तो इसे रख ले जाओ, रास्ते में खा लेना। "
गुड्डू," मां, मुझे खाना नहीं खाना है। "
मां," क्या हुआ बेटा ? तू इतना परेशान क्यों है ? "
गुड्डू," कुछ नहीं... मैं काम पर जा रहा हूं। "
गुड्डू काम पर चला गया। उसके पीछे पीछे विमला भी चली गई। घर से निकलकर गांव की चौपार पर कुछ लड़के गुड्डू को चिढ़ाने लगे।
पहला लडका," देखो तो फटे पुराने कपड़े पहन कर जा रहा है बेचारा। इधर देख... यह कुर्ता शहर से चाचाजी लाए हैं। देखा है क्या कभी ? औकात ही नहीं है इसलिए ऐसे घूमता रहता है। "
दूसरा लड़का," बेचारा पैदल ही घूमता है। जहां गांव के सभी लड़के मौज कर रहे हैं, यह बेचारा मजदूरी कर रहा है। यह जीवन में कभी साइकिल भी नहीं खरीद सकता। "
तीसरा लड़का," हां, इसकी मां कभी मोटरसाइकिल पर भी नहीं बैठ पाएगी; क्योंकि इसकी कमाई में रोटी की पूर्ति भी नहीं होती होगी। "
पहला लडका,"मोटर साइकिल तो बहुत बड़ी बात है। पहले तो साइकिल ही खरीद ले। "
बाकी सभी लड़के गुड्डू पर हंसने लगे। गुड्डू से आज सुना नहीं गया। वह जंगल की तरफ जाने लगा।
लडका (मन्नू)," बिट्टू भैया, कहां भाग रहे हो ? "
बिट्टू," मरने जा रहा हूं। चलोगे साथ में ? "
मन्नू," हम तुम्हारे साथ मर तो नहीं सकते लेकिन साथ चल सकते हैं। "
गुड्डू," लेकिन क्यों ? "
लड़का," गांव में बताने के लिए भी तो कोई चाहिए, गुड्डू भैया कैसे मरे ? "
गुड्डू," मेरा पहले से दिमाग खराब है। "
मन्नू," ना ना भैया... दिमाग तो तुम्हारा बहुत ही बढ़िया है। मम्मी कह रही थी। "
गुड्डू," चलो साथ चलो लेकिन मुंह बंद करके चलना। "
मन्नू," हूं...। "
गुड्डू का ध्यान कहीं और था इसलिए उसने नीचे नहीं देखा और गुड्डू का पैर गड्ढे में चला गया और वह नीचे गिर गया।
गुड्डू," मैंने गड्ढा नहीं देखा लेकिन तू तो बता सकता था। "
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मन्नू," हूं। "
गुड्डू," हां, क्या कर रहा है ? मुंह नहीं खोल सकता क्या ? "
लड़का," भैया, मेरी नजर तो कौवा से भी तेज है। मुझे गड्ढा तो पहले से ही दिखाई दे गया था लेकिन तुम बोलने को मना किए थे ना। "
गुड्डू," हे भगवान ! "
गुड्डू और मन्नू फिर आगे चले गए। उन दोनों ने कुछ बांस काटे और उससे एक साइकिल बनाना शुरू की।
मन्नू," भैया, तुम तो कह रहे थे कि मरने जा रहे हो। लेकिन यह सब क्या है ? "
गुड्डू," अपना मुंह बंद करके काम पर ध्यान दो। "
गुड्डू ने 2 दिन तक मेहनत की और उन बांस की लकड़ियों से एक बहुत ही सुंदर और प्यारी सी साइकिल तैयार कर दी।
मन्नू," अरे भैया ! तुम तो कमाल ही कर दिए। यह तो बहुत ही अच्छी साइकिल है। "
गुड्डू," अच्छी लग रही है ना। "
मन्नू," बहुत अच्छी लग रही है। हमको भी एक साइकिल बना दीजिए। "
गुड्डू," बना दूंगा बाद में लेकिन अभी गांव चलते हैं सभी को साइकिल दिखाने के लिए। सभी लोग बहुत खुश हो जाएंगे। "
मन्नू," हां भैया। "
गुड्डू ने साइकिल को पूरे गांव में चलाया। सभी गांव वाले साइकिल को देखने के लिए घर से बाहर आने लगे।
आदमी," अरे वाह ! यह साइकिल तो बहुत ही प्यारी और अच्छी लग रही है। "
मन्नू," हमारे भैया ने बनाया है। "
लडका (रौनक)," अरे गुड्डू ! तुमने तो बहुत अच्छी साइकिल बनाकर तैयार कर दी। इस साइकिल के सामने तो हमारी गाड़ियां भी फेल हो गई है। "
गुड्डू," धन्यवाद भैया ! "
दूसरा लड़का," अरे ! ऐसी साइकिल तो मैं भी बना दूंगा। इसमें कौन सी बड़ी बात है। इस बात के लिए इस गुड्डू को इतना सर पर क्यों चढ़ा रहे हो ? "
रौनक," तो अब तक कहां थे तुम ? बनाई क्यों नहीं ऐसी साइकिल फिर ? बांस की कमी पड़ गई थी क्या ? हा हा हा... बड़े आए इससे बढ़िया साइकिल बनाने। "
लड़का," देखना... मैं इससे भी अच्छी साइकिल बनाऊंगा। " और वहां से चला जाता है।
रौनक," अरे गुड्डू ! तुम इसकी बातों का बुरा मत मानना। यह तो बचकानी बातें ही किया करता है। "
गुड्डू साइकिल को अपनी मां के पास लेकर गया।
गुड्डू," मां, मैंने यह साइकिल बनाई है। अब मैं भी आपको साइकिल पर घुमा पाऊंगा। "
मां," यह तो तुमने कमाल कर दिया बेटा। आज मैं बहुत खुश हूं। "
गुड्डू साइकिल को वापस गांव में लेकर गया और जो लोग पहले गुड्डू पर हंस रहे थे, उनके होश उड़ गए।
गुड्डू खुशी-खुशी अपने घर आ गया और उसने साइकिल अपने घर के बाहर खड़ी कर दी।
गुड्डू," मां, जब से मैंने साइकिल बनाई है, सब कुछ बदल गया है। "
मां," मेहनत और ईमानदारी हमेशा रंग लाई है। "
गुड्डू," मैं सो जाता हूं। मुझे सुबह प्रधान जी के यहां भी जाना है। उन्होंने बुलाया है। वह साइकिल के लिए मुझे इनाम देंगे और नई नई साइकिलों के लिए भी प्रेरित करेंगे। "
मां," यह तो बहुत खुशी की बात है। "
गुड्डू सोने के लिए चला गया।
अगले दिन गुड्डू घर के बाहर आया तो उसके होश उड़ गए; क्योंकि उसकी साइकिल वहां पर नहीं थी।
गुड्डू," मां मेरी साइकिल नहीं है। किसी ने चोरी कर ली है। "
मां," अभी ज्यादा देर नहीं हुई है। तू जल्दी से प्रधान जी के यहां जा। "
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गुड्डू दौड़ते हुए प्रधान जी के पास गया।
गुड्डू," प्रधान जी..."
प्रधान जी," हां, बोलो गुड्डू। "
प्रधान जी," मैंने अपनी साइकिल बाहर खड़ी करी थी लेकिन मेरी साइकिल चोरी हो गई है। "
प्रधान जी," तुमको किस पर शक है ? "
गुड्डू," प्रधान जी, मुझे किसी पर शक नहीं है। आप ही मेरी साइकिल दिलवाइए। "
प्रधान जी," तुमने बांस से बहुत अच्छी साइकिल बनाई, यह बात मेरे पास भी आई थी। लेकिन उसे कोई चुरा लेगा यह मैंने नहीं सोचा था। "
गुड्डू," प्रधान जी, मैं उस साइकिल को आज आपके पास लेकर आने वाला था लेकिन साइकिल नहीं थी। "
प्रधान जी," कोई नहीं... मैं जल्द से जल्द कोशिश करूंगा कि तुम्हारी साइकिल मिल जाए। अच्छा ठीक है। "
यह सुनकर गुड्डू अपने घर वापस उदास मन से लौट आता है। रास्ते में उसे मन्नू मिलता है।
मन्नू," भैया, हमें खबर मिली थी कि साइकिल चोरी हो गई है। "
गुड्डू," आज साइकिल को प्रधान जी को दिखाने जाना था। वह उसे देखकर काफी खुश होते और पुरस्कार भी देते।
लेकिन अब क्या करूं ? अब इतनी जल्दी तो कोई नई साइकिल भी नहीं बन पाएगी। "
मन्नू," हां भैया, लेकिन मुझे तो उस भूषण पर ही शक लगे है। "
गुड्डू," अरे ! नहीं यार... वह तो केवल बड़बोला है, ऐसा काम नहीं करेगा। "
मन्नू," कहीं रोनक तो..."
गुड्डू," पागल हो गया है क्या ? रौनक प्रधान जी का बेटा है। "
मन्नू," तुमने देखा नहीं था, साइकिल की कितनी तारीफ कर रहा था ? "
गुड्डू," प्रधान जी ने सभी को बुलाया है । "
जल्दी ही वे दोनों प्रधान जी के पास गए। वहां बाकी लोग भी आ गए।
प्रधान," मुझे पता चल गया है कि गुड्डू की साइकिल किसके पास है ? "
गुड्डू," प्रधान जी, आपको पता चल गया ? "
प्रधान जी," हां, मुझे पता चल गया। "
गुड्डू," कौन है वो ? "
प्रधान," मेरे पास बस यह बांस की डंडियां हैं जिसको मैंने इस पैकेट में छुपाया हुआ है। मैं तुम सभी को यह दूंगा। "
गुड्डू," लेकिन इससे क्या होगा प्रधान जी ? मैं कुछ समझ नहीं पा रहा हूं। "
प्रधान," इन सभी बांस की लकड़ियों पर मैंने एक फूल लगाया है। जो भी चोर होगा उसकी डंडी से फूल हट जाएगा।
सभी एक एक पैकेट उठा लो और कोई भी इसे खोल कर नहीं देखेगा। मैं कल सबसे यही मिलूंगा। "
सभी ने एक-एक पैकेट उठाई और अपने अपने घर चले गए। अगले दिन शाम को सभी लोग फिर से वहां इकट्ठा हुए।
प्रधान जी," अब अपनी अपनी पैकेट खोल लो। "
सभी ने अपनी पैकेट खोली लेकिन किसी की भी डंडी पर फूल नहीं था केवल मनु की डंडी पर ही फूल था।
प्रधान जी," अब मैं अपने फैसले पर पहुंच गया हूं। गुड्डू की साइकिल मन्नू ने चुराई है।
मन्नू, अब तुम अपना सच खुद अपने मुंह से ही बोल दो वरना मुझे अपना तरीका अपनाना पड़ेगा। "
मन्नू," हमें माफ कर दो मालिक। हमसे बड़ी भूल हो गई। इतनी बड़ी गलती होने की वजह से डर रहा था। "
प्रधान जी," अच्छा ठीक है। तुम्हें किस बात का डर था ? "
मन्नू," क्योंकि मैंने ही साइकिल चराई है। "
गुड्डू," तुम चोर भी हो ? "
मन्नू," हां भैया, हमें वह साइकिल पसंद आई तो उसे तुम्हारे घर के बाहर से चुरा लिए।
हमने गुड्डू भैया से हमारे लिए नई साइकिल बनाने के लिए कहा लेकिन उन्होंने नहीं बनाई। हमें माफ कर दो। "
गुड्डू," अब इसका फैसला तो प्रधान जी ही करेंगे। "
मन्नू," मैं साइकिल वापस ला रहा हूं। "
प्रधान जी," लेकिन तुम्हें इस गलती के लिए माफ नहीं किया जा सकता। तुम्हें मैं गांव से बाहर निकलता हूं। "
गुड्डू," नहीं प्रधान जी... मन्नू की इस गलती पर उसे माफ कर दीजिए। उसे गांव से बाहर मत निकालिए।
मुझे पूरा विश्वास है कि इस बार मन्नू ऐसी कोई गलती नहीं करेगा और मेरे साथ मिलकर साइकिल बनाने के काम में हाथ बटाएगा। "
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मन्नू," भैया, आप महान हैं। हमसे बहुत बड़ी भूल हो गई है। हमें माफ कर दो। "
प्रधान जी," अच्छा गुड्डू.... ठीक है। अगर तुम कहते हो तो मन्नू को एक मौका और देते हैं। "
गुड्डू को साइकिल वापस मिल गई। उसने मन्नू के साथ मिलकर साइकिल बनाकर बेचना शुरू कर दिया और अपनी मां के साथ खुशी-खुशी रहने लगा।
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