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चतुर सेठ और ठग | Chatur Seth Aur Thug | Hindi Kahaniya | Moral Stories | Bed Time Story | Hindi Fairy Tales

चतुर सेठ और ठग | Chatur Seth Aur Thug | Hindi Kahaniya | Moral Stories | Bed Time Story | Hindi Fairy Tales
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Feb 23, 2023
हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई मजेदार Series में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है - " चतुर सेठ और ठग "  यह एक Fairy Tales Story  है। अगर आप भी Hindi Kahaniya, Moral Story in Hindi या Bed Time Stories पढ़ने का शौक रखते है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।

चतुर सेठ और ठग | Chatur Seth Aur Thug | Hindi Kahaniya | Moral Stories | Bed Time Story | Hindi Fairy Tales

Chatur Seth Aur Thug | Hindi Kahaniya| Moral Stories | Bed Time Story | Hindi Fairy Tales



 चतुर सेठ और ठग 

एक गांव था होशियारपुर जिसमें जमींदार प्रेम सिंह अपने इलाके का सबसे होशियार आदमी था। किंतु उसमें एक ही खराबी थी। 

वो यह कि उसे दूसरों को परेशान करने में मजा आता था। जिस दिन दो-चार लोगों को परेशान ना करता उस दिन उसे चैन ना पड़ता।

प्रेम सिंह," आज कुछ बेचैनी सी हो रही है। बहुत दिनों से ना तो किसी को चूना लगाया है और ना ही परेशान किया है। क्यों न बाहर चलकर लोगों को परेशान किया जाए ? "

सोचकर उसने दूसरे गांव जाने का इरादा बना लिया और चलने की तैयारी कर ली। तभी अचानक उसने देखा।

 प्रेम सिंह," मेरी जेब में तो एक फूटी कौड़ी भी नहीं है। अब क्या किया जाए ? मैं उल्लू कैसे बनाऊंगा लोगों को ? "

प्रेम सिंह," अरे ! सुनती हो ? घर में कोई कीमती चीज है जो मेरे काम आ सके ? "

प्रेम सिंह की पत्नी," अब आपकी ठगई के लिए मेरे पास कोई भी सामान नहीं। शेर भर घी होगा। इसी से अपना काम चलाओ। "

प्रेम सिंह," अरे ! हट पगली... शेर भर का क्या होगा ? पाव भर घी ही काफी है। "

प्रेम सिंह की पत्नी," एक काम करो... एक मटके में गले तक मिट्टी भर लो और ऊपर से उसमें घी डाल दो जिससे वह मटकी घी से भरी हुई लगेगी। "

प्रेम सिंह," अरे वाह ! मेरी कमला रानी, तू तो मेरे साथ रह रहकर खूब चतुर हो गई है। "

प्रेम सिंह की पत्नी," हां सही कहा... तुम जैसे ठग और बेईमान इंसान के साथ रह रहकर ऐसे कामों में दिमाग चलने लगा है मेरा। "

उसके बाद प्रेम सिंह ने गले तक मिट्टी भरे मटके में ऊपर से थोड़ा सा घी डाल लिया और हाथ में लेकर दूसरे गांव की ओर चल पड़ा। दूसरे गांव में गली, बाजार और मोहल्ले से होते हुए सुनार की दुकान पर जा पहुंचा। 

दुकान पर उसने देखा कि एक चांदी के हत्थे वाली एक सुंदर तलवार लटक रही है। उस तलवार को देखकर प्रेम सिंह का मन ललचा गया। 

प्रेम सिंह," वाह ! क्या चीज है ? अगर यह सौदा पट जाए और यह तलवार मेरे हाथों में आ जाए तो मजा ही आ जाएगा। "

सुनार," कौन हो भाई ? इस गांव के तो नहीं लगते हो। "

प्रेम सिंह," भाई लाला, यह तलवार कितने की होगी ? "

अपनी गंजी खोपड़ी खुजलाते हुए लाला बोला," तलवार तो सस्ती है लेकिन तुम कहां से आए हो और इस मटके में क्या है ? "

प्रेम सिंह," लाला जी, इस मटके में तो शुद्ध देसी घी है। "

एकदम शुद्ध घी देखकर लाला के मुंह से लार टपक पड़ी।

और लाला बोला," देखो भाई, यह तलवार भी शुद्ध चांदी की है।इसे बनाने में भी बहुत पैसा लगा है। मगर मैंने देखा कि यह तलवार तुमको बहुत पसंद है। 

तो ले लो। तुम्हारे इस शुद्ध देसी घी के बदले में मैं यह तलवार तुम्हें भेंट करता हूं। "

प्रेम सिंह को उम्मीद ना थी कि सौदा इतना सस्ता पट जाएगा। प्रेम सिंह ने तलवार को मयान में से निकाला और अच्छी तरह से नजर मारकर वापस उसे मयान में ही रख दिया। इस सौदे के कारण दोनों की आपस में अच्छे से जान पहचान हो गई।

लाला बोला," अगली बार जब आओ तो तुम्हारे पास जितना घी हो सारा का सारा लेते आना। बदले में अपनी पसंद की कोई भी दूसरी चीज लेते जाना। 


अगली बार भाभी के लिए ऐसी अंगूठी बना दूंगा कि जिंदगी भर तुम्हारी गुलाम बनके रहेगी। "

प्रेम सिंह," अच्छा - अच्छा ठीक है। अगली बार मैं बड़ी मटकी लाऊंगा। "

यह कहकर प्रेम सिंह वहां से चला गया। उसे डर था कि कहीं उसका भांडा ना फूट जाए। वह वहां से फुर्ती से निकल गया। 


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वापस लौटते हुए जब वह जंगल में पहुंचा तो सोचा," अरे ! मेरी पसंद की तलवार तो मुझे सस्ते में मिल गई। क्यों न तलवार की परीक्षा की जाए ? "

उसने तलवार को मयान में से निकाला और जोर से एक पेड़ के तने पर दे मारी। तने में लगते ही तलवार मिट्टी की तरह जमीन पर बिखर गई। 

यह देखकर प्रेम सिंह हताश हो गया और बोला," अच्छा... तो अच्छा वाला काटा है उसने तेरा। वाह रे लाला ! तू तो मेरा भी बाप निकला। "

उधर जब लाला घर पहुंचा। लाला," कहां हो भाग्यवान ? आज बाजार में एक आदमी आया था। उसे बड़ा अच्छा उल्लू बनाया मैंने। "

लाला की पत्नी," क्यों आप लोगों को ठगते हो ? किसी दिन अगर यह हरकत आपकी किसी और को पता चल जाएगी तो बाजार में कभी बिना कपड़ों के नजर आओगे। "

लाला," क्या, कुछ भी बोलती रहती हो ? देखो... मैं क्या लेकर आया हूं ? गांव का शुद्ध देसी घी... "

मगर जैसे ही जमीन पर बैठकर उसने मटकी खोली और एक परत घी निकाला तो उसमें थोड़ा सा घी और बाकी सब मिट्टी नजर आई।

लाला," अरे ! यह क्या ? "


लाला की पत्नी," अरे ! यह क्या ? इसमें तो मिट्टी भरी पड़ी है। आपको उल्लू बना दिया। "

यह देखकर लाला की पत्नी खूब हंसने लगी और लाला भी मन ही मन प्रेम सिंह की अक्ल का दाद देने लगा। 

लाला," यह तो मुझसे भी ज्यादा अक्लमंद निकला। "

कई दिन बीत गए। एक दिन प्रेम सिंह ने सोचा।

प्रेम सिंह," कई दिन हो गए। लाला के पास चलना चाहिए। लाला से समझदार और कोई नहीं हो सकता। उसने उल्लू बनाया था मुझे। सबक तो सिखाना बनता ही है। "

उसने अपनी लाठी और चादर उठा ली और गांव जा पहुंचा।

लाला जी अपनी दुकान पर बैठे थे। प्रेम सिंह को देखकर ही लाला ने खड़े होकर स्वागत किया। 

लाला," अरे ! आओ आओ प्रेम सिंह भाई। कहो प्रेम सिंह जी... तलवार कैसी लगी आपको ? "

प्रेम सिंह," लालाजी चीज तो लाजवाब थी। बहुत लाजवाब चीज रखते हो। लेकिन घी में भी काफी स्वाद आया होगा ? "

लाला जी को हंसी आते आते रुक गई और बोले," गांव के शुद्ध देसी घी में स्वाद ना आए तो और गांव से घी क्यों मंगवाए ? "

लाला जी ने प्रेम सिंह को प्रेम से अपने पास बैठा लिया। उठकर चिलम उठाई और बोले," प्रेम सिंह, अब कुछ दिन यही रुको। "

प्रेम सिंह ने बात मान ली। शाम को खूब चकाचक भोजन बना। खाने के लिए दोनों अलग-अलग आसनों पर बैठ गए। दो थाल सामने आए। 

लाला ने सोने के थाल में भोजन परोसकर प्रेम सिंह के सामने रखा और स्वयं चांदी की थाल ले ली। 

प्रेम सिंह," लाला जी, आज आपने तो मेरा दिल खुश कर दिया। आप तो खाना भी सोने की थाल में देते हो। "

लाला ने मन में सोचा - यह सोने का थाल देखकर तो तुम्हारे मुंह में पानी आ गया होगा।  


लाला," अरे, अरे प्रेम सिंह ! मैं तो अपनी मेहमान नवाजी कर रहा हूं। सोने की थाल देखकर प्रेम सिंह खाना-पीना और भूख सब भूल गया और सोचने लगा। 

प्रेम सिंह," खाना तो अपनी जगह। किसी तरह सोने का थाल हाथ लग जाए। "

खाना खत्म हुआ तो दोनों के विस्तर आंगन में बराबर बराबर लगा दिए गए। थोड़ी देर बाद लाला जी को नींद आ गई। जब वो घर्राटे भरने लगे। 

प्रेम सिंह," थाल लेकर तालाब के कीचड़ में छुपा आता हूं। किसी को शक भी नहीं होगा। "

प्रेम सिंह उठा और थाल को तालाब की कीचड़ में छुपा आया।

आधी रात को जब लाला की आंख खुल गई तो उसने देखा कि थाल गायब है। 

लाला," थाल गायब है। जाली ने अपना काम बना लिया। रातों-रात थाल गायब कर दिया। "

प्रेम सिंह के जूतों पर तालाब का कीचड़ लगा हुआ था जिससे लाला को समझते देर न लगी। 

लाला," अच्छा तो थाल तालाब के कीचड़ में छुपाया गया है। "

प्रेम सिंह जब नींद में पढ़ा रहा तभी लाला जी कीचड़ में से थाल को निकाल लाए। सुबह आंख खुलने पर प्रेम सिंह ने घर वापस जल्दी लौटने की इजाजत ली और बोला।


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प्रेम सिंह," मुझे आज जल्दी ही चले जाना था पर आंख नहीं खुली। "

लाला," कोई बात नहीं, खाना खाकर चले जाना। इतनी भी क्या जल्दी है ? " कहकर लाला जी ने उसे रोक लिया।

दिन में जब दोपहर के खाने में सोने का थाल प्रेम सिंह ने अपने आगे पाया तो उसकी आंखें खुली की खुली रह गई। 

प्रेम सिंह (मन में) - अरे ! लाला तो बड़ा दिलवाला मालूम पड़ता है। 


प्रेम सिंह," लाला जी, आपके पास तो ऐसे कई थाल होंगे है ना ? "

लाला," ना ना... केवल एक ही थाल है। वह भी बहुत पुराना हो चुका है। "

लाला का उत्तर सुनकर प्रेम सिंह चौक गया। 

प्रेम सिंह," अरे ! लाला भी कम उस्ताद नहीं है। रातों रात थाल को निकाल लाया। "

उसके चेहरे पर थाल के वापस आ जाने का दुख था। पर उसने यह जाहिर ना होने दिया। वे दोनों अब एक दूसरे को अच्छे से जान गए थे।

थोड़ी देर बाद लालाजी हंसमुख से बोले," प्रेम सिंह, हमारी भलाई बस इसी में है कि हम दोनों मिलकर काम करें। कहीं परदेस चले जाएंगे तो कुछ कमा ही लेंगे। 

तुम्हारी और हमारी अक्ल भी एक जैसी ही है। इसलिए हम बड़े-बड़े काम आसानी से कर सकते हैं। "

सोच विचार कर प्रेम सिंह बोला," जी मंजूर है। हम लोग दूर देश चलते हैं जहां हमें कोई ना जानता हो। "

बात पक्की हो गई और अगले ही दिन दोनों परदेश के लिए निकल पड़े। 

चौथे दिन वे एक नवाब की मैयत में जा पहुंचे। नवाब की 10 दिन पहले ही मृत्यु हो चुकी है और सारे शहर में मातम छा गया है।

प्रेम सिंह," लगता है यहां कुछ हुआ है। " 

लाला," लग तो रहा है। कुछ हुआ तो है। चलो चल कर देखते हैं। महल में तो काफी लोग दिख रहे हैं। अपने मतलब का कुछ मिल पाएगा यहां पर ? "

प्रेम सिंह," क्या लाला जी ? कुछ तो जरूर मिलेगा। नवाब तो काफी रहीस है ना...। "

दोनों मित्रों ने इस वातावरण में फायदा उठाने की सोची। नवाब के संबंध में पूरी जानकारी ले लेने के बाद उन्होंने अपना भेष बदल लिया। 


लाला जी भारी-भरकम शरीर के थे इसीलिए एक साहूकार की वेशभूषा बनाकर वे एक साहूकार बन गए और प्रेम सिंह कान में पेंसिल लगाकर उनका मुनीम बन गया। 

और कागजों का एक बंडल लाल बस्ते में लपेट कर सेठ जी के साथ महल में अंदर चले गए।

महल के अंदर शांति छाई हुई थी। प्रेम सिंह और लाला जी अंदर पहुंचे।
प्रेम सिंह," अरे ! नवाब साहब क्या कहीं बाहर गए हैं क्या..?? "

मुनीम की बात सुनकर मौलवी उदास होकर बोला," मुनीम जी, नवाब साहब तो खुदा को प्यारे हो गए। आज उनका मृत घोष किया जा रहा है। "

मालदीव की बातें सुनकर उन दोनों ने अपनी ऐसी शक्ल बना ली कि जैसे उनका कुछ छीन लिया गया हो। साहूकार तो बेहोश ही हो गए। उनकी यह दशा देखकर दरबार में खलबली मच गई। तभी नवाब का बड़ा लड़का वहां पहुंचा।

मुनीम," अरे ! दस वर्ष पहले नवाब साहब ने सेठ जी से 10 हजार रुपये लिए थे। दोस्ती के खातिर लिखा पढ़ी कुछ नहीं की गई। इसलिए सेठ जी बेहोश हो गए हैं। "

सुनकर दरबारियों को आश्चर्य हुआ फिर ठंडा पानी मंगाकर सेठ जी के सिर पर डाला गया। उन्हें होश में लाने की कोशिश की गई। होश में आकर वे जोर से चिल्लाए।

साहूकार," नवाब साहब, मेरे 10 हजार रुपये... हाय रे ! मेरे 10 हजार। यहां नहीं तो जन्नत में आकर मैं आपसे ले लूंगा। "

 कहकर वे फिर से बेहोश हो गए। यह देखकर मालवियों ने सोचा - यह बनिया कहीं पैसे के पीछे जान न दे दे। मर गया तो आफत खड़ी हो जाएगी। नवाब साहब का लड़का भी घबरा गया। 

नवाब साहब का लड़का," खुदा के लिए सेठ की जान बचाओ। मौत का दाग हमारे माथे पर न लग जाए। मैं उनका सारा हिसाब चुका दूंगा। "


सेठ को होश में लाया गया। 

नवाब साहब का लड़का," सेठ जी, आपके पास कोई सबूत है कि मेरे पिता जी ने आप से 10 हजार रुपये लिए थे ? "

लड़के की बात सुनकर सेठ बोला," सबूत तो कोई नहीं किंतु अगर मैं सच्चा हूं तो नवाब साहब की कब्र पर चलो। 

नवाब साहब खुद अपने मुंह से बोलेंगे कि उन्होंने रुपए लिए हैं या नहीं। सब ने सेठ की बात मान ली है। तय हुआ कि आज रात को ही कब्र पर चला जाए। 

वहां से चले जाने पर सेठ और मुनीम दोनों ने मुशायरा किया। 

सेठ बोला," अंधेरा होने से पहले ही तुम कब्र में घुस बैठो। डरना मत। नवाब का लड़का जब कोई सवाल पूछे तो ठीक-ठाक जवाब देना। "

मुनीम," अरे सेठ जी घबराते क्यों हो ? लेकिन बरखुरदार कहीं रुपया लेकर अकेले ही चंपद मत हो जाना। ऐसा ना हो कि मैं कब्र में ही पड़ा रहा हूं और तुम भाग खड़े हो जाओ। "

बात पक्की हो गई। आधी रात के समय सभी गांववासी नवाब की कब्र पर इकट्ठा हो गए। कब्र के किनारे एक ओर सेठ जी खड़े थे और दूसरी ओर नवाब के साहबजादे। 

कब्र पर जाकर साहबजादे ने पूछा," अब्बू जान, यह साहूकार बोल रहा है कि आपने इससे 10 हजार रुपये लिए थे। क्या यह सच है ? "

आवाज," हां बेटे, कुछ वर्ष पहले सेठ जी ने मेरी मदद की थी। तुम उन्हें 10 के बजाय 15 हजार दे दो। उनका अहसान मैं कभी नहीं भूल सकता। " 

सुनकर लोग सन्नाटे में आ गए। सेठ जी सच्चे साबित हो चुके। जल्द ही 15 हजार की थैली सेठ जी को सौंप दी गई। 

15 हजार रूपये लेकर सेठ जी के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे। मन में स्वार्थ तो भरा ही था। 

सेठ जी," कौन जाकर जमींदार को कब्र से निकाले ? किसी ने देख लिया तो सारी रकम जाएगी और ऊपर से जूते पड़ेंगे सो अलग। "


मुनीम," सब लोग चले जाएं तब कब्र से निकलूंगा। वैसे आवाज तो किसी की नहीं आ रही है बाहर से।

थोड़ी दूर जाने के बाद लाला को लगा अगर प्रेम सिंह निकल आया तो मुझसे आधा हिस्सा मांगेगा। मुझे इसका कुछ करना पड़ेगा। 

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वापस आकर लाला प्रेम सिंह से पूछता है," और भाई प्रेम सिंह, कैसे हो ? अंदर सब ठीक है कि नहीं ? "

प्रेम सिंह," लाला जी बाहर बैठे क्या बात कर रहे हो ? अंदर आ जाओ आप भी। आपको भी पता चल जाएगा। जल्दी बाहर निकालो। "

लालाजी ने सोचा - यह पत्थर में इस कब्र पर रख देता हूं। ना यह कब्र से बाहर आएगा और ना मेरा आधा हिस्सा जाएगा। 

प्रेम सिंह अपने आप स्वयं निकल आए तो ठीक है। ना निकला तो वही उसका राम नाम सत्य हो जाएगा। 

प्रेम सिंह अंदर चिल्लाता हुआ बोला," अरे निकाल दे मुझे लाला नहीं तो अच्छा नहीं होगा। 

लाला कब्र पर पत्थर रखकर तेजी से अपने घर की ओर निकल जाता है।


प्रेम सिंह कब्र में लेटे-लेटे अपने किए पर पछतावा जता रहा था और सोच रहा था कि मैंने अब तक कितने गलत काम किए हैं ? और अंत में पूरी ताकत लगाकर कब्र से बाहर निकल आता है।

बाहर आने के बाद...

प्रेम सिंह," लाला, तू तो गया रे...। "


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Pradeep Kushwah

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