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Bewkoof Pati| Hindi Kahaniya | Moral Stories | Hindi Fairy Tales | Kahaniyaa
बेवकूफ पति
जौनपुर गांव में सभी लोग आपस में मिल जुल कर रहते थे। उसी गांव में मंगल अपने परिवार के साथ रहता था। वह अपने गधे को नहला रहा था।
मंगल," अरे ! मेरी प्यारी जमुनियां, आज तो मैं तुझे ऐसा नहलाऊंगा कि सब देखते रह जाएंगे। एकदम हीरोइन लगेगी तू। "
मंगल को अपनी जमुनियां से बहुत प्यार था। वह उसे बड़े ही लाड प्यार से रखता, उसकी देखभाल करता और कभी भी अपने से दूर नहीं रहने देता।
वह उसे अपने घर में ही रखता था। उसी के साथ खाता, बैठता और उसी के साथ सैर पर जाता।
शीला मंगल की पत्नी थी। मंगल अगर अपने घर में होता तो शीला उसके बगल में होती और पीछे जमुनियां बंधी हुई होती।
शीला," अरे ! क्या कर रहे हो आप ? "
मंगल," देख नहीं रही हो, हम अपनी जमुनियां के लिए फूलों की माला बना रहे हैं। "
शीला," भगवान ही भला करें हमारा। उसी से शादी कर लेते अगर इतना ही प्यार था उससे तो। हमारे लिए तो आज तक एक फूल भी नहीं लेकर आए और उसके लिए पूरी की पूरी माला बना रहे हो। वाह भाई वाह... "
मंगल," हमारी जमुनियां के बारे में कुछ मत कहो। जाओ अपना काम करो। "
शीला," हमें इस घर में काम करने के लिए ही तो लाए हो। सुनो एक काम की बात बतानी है आपको। कल शहर से केशरी प्रसाद नाम के किसी आदमी का फोन आया था। फोन पर वह पिताजी का नाम ले रहा था। "
मंगल," क्या ? केशरी प्रसाद..?? तुमने उनसे क्या कहा ? "
शीला," मैं क्या कहती ? मैंने कह दिया जब वह घर पर होंगे तब बात करवा दूंगी। "
मंगल उसी समय अपने घर के टेलीफोन को उठाता है और केशरी प्रसाद के घर फोन लगाता है।
मंगल," नमस्कार साहब... हम जौनपुर से मंगलू बोल रहे हैं। "
केशरी प्रसाद," मंगलू ? कौन मंगलू ? "
मंगल," अरे ! हम दीनानाथ के बेटे बोल रहे हैं जौनपुर से। आप को मेरा प्रणाम है। "
केशरी प्रसाद," अच्छा तो तुम दिनानाथ के बेटे हो। हां हां, खुश रहो, खूब खुश रहो। अच्छा हां मैंने कल दीनानाथ का हाल चाल पूछने के लिए फोन किया था। बहुत वक्त बीत गया बात नहीं हो पाई। इसीलिए कल फोन किया था। कहां है वह इस वक्त ? "
मंगल," जी, हमारे पिताजी तो पिछले साल ही स्वर्ग लोग सिधार गए थे। उन्हें एक गंभीर बीमारी हो गई थी। "
केशरी प्रसाद," अरे, अरे ! यह तो बहुत दुख की बात है। उसे मैंने बहुत समय पहले देखा था। मेरी आंखों के सामने बढ़ा हुआ था वह। 25 साल तक उसने हमारे घर पर काम भी किया था। उसके बाद वह गांव चला गया।
मंगल," जी हां, पिता जी आपको भगवान स्वरूप मानते थे। दिन भर बस आपकी ही तारीफ करते रहते थे और आपके बारे में कई बातें बताते रहा करते थे।
लेकिन अब पिताजी तो नहीं हैं। लेकिन मैं जरूर आपकी सेवा कर सकता हूं। आपके बहुत अहसान है हम पर। "
केशरी प्रसाद," घर के छोटे-मोटे काम है। मेरा बेटा तो विदेश में रहता है। बस इन्हीं कामों को संभालने के लिए एक नौकर की जरूरत थी। "
मंगल," आपकी मदद करना हमारा परम कर्तव्य है। आप जो कहेंगे, वह मैं करता रहूंगा। "
केशरी प्रसाद," तो तुम घर आ जाओ। यहीं पर तुम्हारा खाने-पीने और रहने का इंतजाम कर दूंगा। तुम्हें तनख्वाह भी अच्छी खासी दी जाएगी। केवल बस तुमको घर और घर के सदस्यों का अच्छे से ध्यान रखना होगा। "
मंगल," अरे ! यह तो मेरा सौभाग्य होगा। ठीक है... मैं आ जाऊंगा। "
उसके बाद मंगलू शहर जाने की अपनी पूरी तैयारी कर लेता है और अपनी पत्नी से विदा लेता है।
मंगल," तुम अपना ध्यान रखना। ठीक है ना... शहर पहुंचकर हम फोन कर लेंगे। "
और जमुनियां को लेकर निकलने लगता है।
शीला," अरे ! इसे कहां लेकर जा रहे हो ? इस जानवर का भला शहर में क्या काम ? "
मंगल," अरे ! तुमसे कितनी बार कहा है ? जमुनियां को उसके नाम से बुलाया करो मैं इसके बिना नहीं रह सकता। प्यारी जमुनियां तो मंगलू के साथ ही जाएगी। "
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शीला," कैसे इंसान से पाला पड़ा है ? जिसको साथ ले जाना चाहिए उसे तो घर छोड़ जा रहे हो और एक गधे को साथ ले जा रहे हो। "
मंगल," अब ज्यादा बातें ना बनाओ। लाख दफा समझाया है कि बाहर जाते समय टोका मत करो। बस टुकुर टुकुर करती रहती हो। अब हटो, हमें जाने दो। वैसे भी देर हो रही है। "
मंगलू जमुनियां के साथ केशरी प्रसाद के घर के बाहर पहुंचा। वह गधे पर चढ़कर अंदर जाने लगता है। तभी उसे गार्ड रोकता है।
गार्ड," अरे भाई ! रुको रुको, इस गधे पर बैठ कर कहां घुसे जा रहे हो ? कौन हो तुम हां..? और कहां जाना है ? "
मंगल," जी हमारा नाम मंगलू है। जौनपुर से आए हैं और यह हमारी जमुनियां है। हमें केशरी प्रसाद जी ने बुलाया है। उन्हीं के घर जा रहे हैं। "
गार्ड," हम कैसे मान लें कि तुम्हें सेठ जी ने बुलाया है और गधे के साथ तू अंदर नहीं जा सकता। "
मंगल," अरे ! कहा तो है यह गधा नहीं, हमारी जमुनियां है। तुम अपनी सेठ को फोन लगाओ। "
गार्ड तुरंत फोन लगाता है।
उसके बाद वह गार्ड मंगल को जमुनियां के साथ अंदर जाने देता है। अंदर जाने के बाद एक घर के सामने 70 वर्षीय बूढ़ा व्यक्ति मंगल का इंतजार कर रहा होता।
यदि देखकर मंगल जमुनियां से उतरकर केशरी प्रसाद के पैरों में गिर जाता है।
केशरी प्रसाद," अरे ! नहीं-नहीं मंगलू, यह सब क्या कर रहे हो ? आओ हमारे घर में तुम्हारा स्वागत है। तुम जौनपुर से यहां तक गधे पर सवार होकर आ गये ? "
मंगल," साहब, यह कोई गधा नहीं हमारी जमुनियां है। हम इसे बहुत प्यार करते हैं। हम इसके बिना नहीं रह सकते।
ऊ का हे ना... गांव में हम इसे किसके सहारे छोड़ कर आते ? इसीलिए हम जहां रहेंगे वही हमारी जमुनियां भी रहेगी। "
केशरी प्रसाद," ठीक है, ठीक है। तुम इसके साथ यहां रह लो। हम इसके खाने पीने का इंतजाम कर देंगे और इसके रहने का भी एक अच्छा इंतजाम कर देंगे। "
तभी केशरी प्रसाद की बहू सोनिया घर से बाहर आती है। शालिनी बहुत मॉडर्न थी और केशरी प्रसाद पुराने विचारों वाले थे।
केशरी प्रसाद के बेटे ने सोनिया से प्रेम विवाह किया था और सोनिया केशरी प्रसाद की बिल्कुल भी इज्जत नहीं करती थी।
केशरी प्रसाद," आओ सोनिया, आओ। यह मंगलू है। कल रात में इसी के बारे में बता रहा था। यह हमारे बहुत ही विश्वसनीय दीनानाथ का बेटा है जो घर के कामों में तुम्हारी पूरी मदद करेगा। "
सोनिया," अरे बुड्ढे ! यह सब काम तुम्हारा है। नौकर चाकर तू ही संभाला कर। मेरे पास और भी बहुत काम है, नौकरों से मिलने के अलावा। "
मंगल को सोनिया का इस तरह का व्यवहार अच्छा नहीं लगता। केशरी प्रसाद भी अपनी नजरों को झुका लेते हैं। तभी सोनिया की नजर जमुनियां पर पड़ती है।
सोनिया," यह गंदा सा घोड़ा किसका है ? "
मंगल," नहीं, नहीं मेम साहब... यह घोड़ा नहीं, यह तो हमारी प्यारी जमुनियां है। "
सोनिया," पता नहीं... आज तक तो मैंने किसी जानवर का ऐसा नाम नहीं सुना। व्हाट एवर.... इसे तुम मुझसे और मेरे घर से दूर ही रखना। "
सोनिया मंगल और जमुनियां को देखकर आंखें घुमाती है। जमुनियां भी सोनिया को देखकर ऊबकाती है।
सोनिया," अरे बुड्ढे ! कल मैंने तुझे ₹1000 देने को कहा था, अभी तक नहीं दिए। भूलने की बीमारी है क्या ? "
केशरी प्रसाद," बहु, अभी देता हूं। बस तुम मंगलू को उसके रहने का कमरा दिखा दो। "
सोनिया," मेरे पास तेरी तरह फालतू टाइम नहीं है। बस अब जल्दी से पैसे निकाल दे। "
सोनिया पूरे एटीट्यूड से पीछे की ओर मुड़कर देखती है। केशरी प्रसाद और मंगल गार्डन की ओर जा रहे थे और जमुनियां भी वहां घास खा रही थी।
जैसे ही सोनिया जाने के लिए आगे मुड़ती है, पीछे से जमुनियां दोनों लातें मारती है। सोनिया गिर जाती है और चिल्लाने लगती है।
सोनिया," ओ माय गॉड..."
तभी केशरी प्रसाद और मंगल पीछे मुड़कर देखते हैं। जैसे ही वे दोनों देखते हैं कि सोनिया पीछे गिरी हुई है, दोनों झट से भागकर उसके पास जाते हैं। दोनों उसे खड़ा करते हैं।
सोनिया," इस पागल जानवर को देखो तो मैं छोडूंगी नहीं। हाय ! मेरी तो कमर टूट गई। अभी के अभी मैं तुम दोनों को इस घर से निकलती हूं। "
मंगल," नहीं, नहीं मैडम जमुनियां को माफ कर दीजिए। न जाने उसने ऐसा कैसे कर दिया ? वरना तो ये ऐसा कभी नहीं करती। "
मंगल," जमुनियां, यह तूने क्या कर दिया ? चल मैडम से माफी मांग। "
जमुनियां सोनिया को देखकर फिर से ऊबकाती है। सोनिया उसे गुस्से की नजरों से देखती है। केशरी प्रसाद सोनिया को घर के अंदर ले जाते हैं। सोनिया किसी तरह से कमर पर हाथ रखकर चल पाती है।
अब दूसरा दिन था...
मंगल जहां रहता है उसी के बगल जमुनियां बंधी रहती है। उसी के पास से होकर बाहर जाने का रास्ता था। सोनिया फोन पर बात करती हुई उधर से जा ही रही होती है। सोनिया बिल्कुल बनी ठनी होती है, पार्टी में जाने के लिए तैयार।
सोनिया," अरे ! क्या बताऊं ? मेरे ससुर इतने पागल है ना... ना जाने कौन से गांव से एक नौकर को बुला लिया है ? बुढ़ापे में इसकी बुद्धि सठिया गई है।
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चलो मैं पार्टी के लिए निकल रही हूं। तू भी निकल। उस बुड्ढे के बारे में बात करके मूड खराब नहीं करना चाहती। "
तभी जमुनियां अपने पीछे के पैरों से सोनिया के ऊपर मिट्टी उछाल देती है और सोनिया की पूरी ड्रेस खराब हो जाती है।
सोनिया," अब मैं इस जानवर को और बर्दाश्त नहीं कर सकती। चल बाहर निकल मेरे घर से। "
सोनिया के चिल्लाने की आवाज सुनकर केशरी प्रसाद और मंगल दोनों घर से बाहर भागते हुए आते हैं।
मंगल दौड़कर जमुनियां को संभालता है। वह हिनाहिना रही होती है।
मंगल," यह तू क्या कर रही है ? "
मंगल," मैडम, इसे माफ कर दो। हमारी बच्ची से गलती हो गई। कृपा करके इस बार माफ कर दो इसे। "
सोनिया," इसने मेरी आज पूरी ड्रेस खराब कर दी। मेरी ड्रेस कितनी महंगी है ? इतने पैसे तो तुमने अपनी पूरी जिंदगी में नहीं देखे होंगे। मेरी जूती की नोंक के बराबर भी तुम्हारी औकात नहीं है। "
केशरी प्रसाद," सोनिया, मंगलू बहुत ही ईमानदार और सच्चा आदमी है। तुम उससे इस तरह की बात नहीं कर सकती। "
सोनिया," अब तो हद ही हो गई। तू अनपढ़ गवार बूढ़ा, अब मुझे सिखाएगा। तेरी औकात भी इस नौकर के जैसी ही है। मेरा पति तुझे दो वक्त का खाना नसीब करा देता है उसे ही बहुत समझ, ज्यादा मुंह मत चलाया कर। "
केशरी प्रसाद की आंखें शर्म से झुक जाती हैं। मंगल केशरी प्रसाद को दया भरी नजरों से देखता है।
सोनिया बढ़ बढ़ाती हुई घर के अंदर चली जाती है।
मंगल," साहब, जमुनियां को माफ कर दो। वो ऐसा कभी नहीं करती। इस घर में आकर पता नहीं इसे क्या हो गया है ? "
केशरी प्रसाद," नहीं मंगलू, तुम्हारी कोई गलती नहीं है। वह जब से इस घर में आई है, कभी भी उसने मुझसे सीधे मुंह बात नहीं की।
न जाने मैंने कितने सपने सजाए थे कि मैं तो अपनी बहू को अपनी पलकों पर रखूंगा ? वह भी मेरी कितनी इज्जत करेगी ? पर सोनिया तो बिल्कुल भी ऐसी नहीं है। "
मंगल को केशरी प्रसाद के लिए बहुत बुरा लगता है।
दूसरा दिन...
केशरी प्रसाद," मंगलू... जरा इधर सुनना। "
मंगल," जी साहब..."
केशरी प्रसाद," यह लिफाफा सोनिया के लिए आया है। लो... यह लिफाफा तुम ही उसे दे देना। "
मंगल," जी साहब, मंगलू वह लिफाफा ले लेता है और उसे लेकर सोनिया को देने जा ही रहा होता है तभी उसकी नजर जमुनियां पर पड़ती है।
मंगल," अरे ! जमुनियां का तो खाने का वक्त हो गया है। जल्दी से मैं जमुनियां को कुछ खाने को दे देता हूं। नहीं तो वह नाराज हो जाएगी। उसके बाद मैं यह लिफाफा सोनिया मैडम को दे आऊंगा। "
वह उस लिफाफे को एक टेबल पर रख देता है जो जमुनियां के पास ही रखी थी और वह जमुनियां के लिए चारा लेने चला जाता है।
जैसे ही वह चारा लेकर लौटता है तो वह देखता है कि जमुनियां उसी लिफाफे को चबा रही थी जो मंगलू सोनिया को देने को जाना था।
मंगल," हाय रे ! दैया यह क्या हो गया ? जमुनियां यह तूने क्या कर दिया ? हाय राम ! अब हम क्या करें ? "
वह चारे को एक तरफ फेंकता है और जमुनियां के मुंह से उस बचे हुए आधे लिफाफे को खींच लेता है। लेकिन तब तक जमुनियां आधे से ज्यादा लिफाफा चबा चुकी थी।
यह देखकर मंगलू चिंता में आ जाता है और सोचने लगता है कि अब तो उसकी नौकरी गई। अपने पिताजी की कमाई हुई सारी इज्जत आज डूबा दी।
तभी पीछे से सोनिया मंगल को आवाज लगाती है।
सोनिया," हे यू... बुड्ढे ने कहा है कि मेरे सारे लेटर्स उसने तुझे दे दिए है। कहां है मेरे लेटर्स ? जल्दी दो मुझे, बहुत जरूरी लेटर्स हैं।
मंगल के हाथ में केवल वही फटा हुआ लिफाफा था। सोनिया थोड़ा आगे आती है और फिर से कहती है," यू.. तुम्हें सुनाई नहीं देता क्या ? "
तभी सोनिया की नजर मंगलू के हाथ में रखें फटे हुए लेटर पर जाती है। उसकी आंखें फटी की फटी रह जाती हैं। वह बहुत जोर से चिल्लाती है। केशरी प्रसाद भी वहां पहुंच जाते हैं।
केशरी प्रसाद," क्या हुआ सोनिया बेटी ? लेटर में क्या लिखा था ? "
सोनिया," लेटर ? माय फुट... पहले क्या एक बुड्ढा कम था इस घर में, जो अपने जैसा एक और बुला लिया। बस अब बहुत हो गया। अब ना तो यह बुड्ढा ही इस घर में रहेगा और ना ही उसके चेले।
इन दो कौड़ी के लोगों की वजह से मेरा बना बनाया काम बिगड़ गया। यह सभी लेटर्स लंदन की एक कंपनी से आए हुए थे ।कितना बड़ा ऑफर था मेरे लिए ? "
केशरी प्रसाद," बहू, गलती हो गई है। माफ कर दो। शांत हो जाओ। "
सोनिया," तुम अपना बोरिया बिस्तर बांध लो और यहां से जाओ। साहिल को मैं संभाल लूंगी। तुम लोग अभी के अभी इस घर से निकलो। "
केशरी प्रसाद और मंगल घर छोड़कर जाने लगते हैं और एक रोड के किनारे रह रहे हैं होते हैं। केशरी प्रसाद की तबीयत बहुत खराब थी। मंगलू के पास अब कोई भी चारा नहीं था।
मंगल," क्या करूं अब ? मालिक की तबीयत भी साथ नहीं दे रही। इस शहर में तो मैं किसी को जानता ही नहीं हूं।
पता नहीं इस मुसीबत से कैसे पार लगेंगे ? मदद करो भगवान। मालिक आप चिंता ना करें। कुछ ना कुछ हल जरूर मिल जाएगा। "
मंगल," अरे ! जमुनियां कहां गई ? "
मंगल जमुनियां को ढूंढने की पूरी कोशिश करता है। पर वह कहीं नहीं मिल रही होती। अंत में वह थककर केशरी प्रसाद के पास ही बैठ जाता है।
मंगल," पता नहीं मेरे साथ यह सब क्या हो रहा है ? यह जमुनियां कहां चली गई ? और ऊपर से मालिक की तबीयत भी खराब है। "
तभी मंगलू देखता है कि एक लड़का उनकी ओर चलकर आ रहा है। वह केशरी प्रसाद का बेटा, साहिल था।
साहिल," मैं साहिल हूं। मैं इतने दिनों से विदेश में था। मैं अपने पिताजी को वापस लेने आया हूं। सोनिया ने उनके साथ बहुत गलत किया है। "
मंगल," जी बाबू साहब... हमने टेलीफोन से आपको संदेशा भेजने की बहुत कोशिश की। चिट्ठी भी भेजी थी लेकिन आप बिजी थे। "
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साहिल," हां, मैं काम में बिजी था। उस बूढ़े आदमी ने मुझे बताया कि आपके पिताजी की तबीयत बहुत खराब है तो मैं दौड़ा दौड़ा चला आया। "
मंगल," कौन सा बूढ़ा आदमी ? और उन्हें कैसे पता चला ? "
साहिल," मुझे नहीं पता। उन्होंने अपनी पहचान नहीं बताई। कद में छोटे- से थे, मोटे और चेहरे पर मूंछे थी। बस इतना कहा कि तुम्हारे पिता की तबीयत बहुत खराब है और फिर वहां से चले गए। "
तभी मंगल देखता है कि जमुनियां भी वापस आ गई। मंगल को अब सारी बातें समझ आने लगी थी। वह समझ जाता है कि जमुनियां कोई और नहीं बल्कि उसके पिताजी ही है।
उसके पिताजी ने अपने मालिक केशरी प्रसाद की मदद की है। मंगल की नजर में जमुनियां की इज्जत और बढ़ जाती है।
वह जमुनियां का और अच्छे से ध्यान रखना शुरु कर देता है और जमुनियां भी मंगलू और केशरी प्रसाद की हमेशा रक्षा करती है।
केशरी प्रसाद का बेटा साहिल अपने पिता को घर वापस ले जाता है। घर पहुंचने के बाद साहिल और सोनिया के बीच झगड़ा होता है।
अंत में साहिल सोनिया को घर से बाहर निकाल देता है। और केशरी प्रसाद का अच्छे से सेवा - सत्कार करने लगता है।
इस कहानी से आपने क्या सीखा ? नीचे Comment में हमें अवश्य बताएं।
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