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जैसी करनी वैसी भरनी | Jaisi Karni Vaisi Bharni | Hindi Kahaniya | Moral Stories | Bed Time Story | Hindi Fairy Tales

जैसी करनी वैसी भरनी | Jaisi Karni Vaisi Bharni | Hindi Kahaniya | Moral Stories | Bed Time Story | Hindi Fairy Tales
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Feb 19, 2023
हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई मजेदार Series में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है - " जैसी करनी वैसी भरनी " यह Fairy Tales Story एक  है। अगर आप भी Hindi Kahaniya, Moral Story in Hindi या Bed Time Stories पढ़ने का शौक रखते है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।

जैसी करनी वैसी भरनी | Jaisi Karni Vaisi Bharni | Hindi Kahaniya | Moral Stories | Bed Time Story | Hindi Fairy Tales

Jaisi Karni Vaisi Bharni | Hindi Kahaniya| Moral Stories | Bed Time Story | Hindi Fairy Tales



 जैसी करनी वैसी भरनी 

राजपुर गांव में सोनू नाम का एक गरीब किसान रहता था। वह बहुत ही ईमानदार था। पूरे गांव में उसकी फसल अच्छी होती थी इसलिए उसकी फसल की अच्छी कीमत मिल जाती थी। 

सभी उसका बहुत सम्मान करते थे। इसीलिए उसका पड़ोसी धनीराम उससे बहुत जलता था। धनीराम उसे नीचा दिखाने और तंग करने का कोई ना कोई मौका ढूंढता ही रहता था।

सोनू," मुखिया जी..."

मुखिया," बोलो सोनू, क्या हुआ ? "

सोनू," मुखिया जी, मैं इस धनीराम से तंग आ गया हूं। यह किसी ना किसी बहाने से रोज कोई ना कोई बड़ी समस्या खड़ी कर देता है। "

मुखिया," अरे सोनू ! क्या हुआ ? पूरी बात बताओ। तभी तो मैं तुम्हारी मदद कर पाऊगा। "

सोनू," मुखिया जी, मेरे और धनीराम की खेत की बीच की मेड़ देखी है ना आपने ? " 

मुखिया," हां हां, यह तो सब जानते हैं। "

सोनू," उस धनीराम ने कल उस बीच की मेड को काट दिया और अपने खेत में पानी चला कर छोड़ दिया। मेरा पूरा खेत पानी से लबालब भर गया। आप कुछ कीजिए ना। "

मुखिया," तो तुम मुझसे क्या चाहते हो ? "

सोनू," मैं उसे समझा समझा कर थक गया हूं। "

मुखिया," पंचायत करा लो। बोलो... तुम तैयार हो ? "

सोनू," ठीक है मुखिया जी... "


पंचायत में...
मुखिया," क्यों धनीराम ? तुम काहे को सोनू को रोज रोज परेशान करते हो ? यह कोई अच्छी बात नहीं है। "

धनीराम," मैं कहां करता हूं मुखिया जी ? यह आपसे किसने कहा ? मैं नहीं, यह सोनू मुझे तंग करता है। भगवान कसम इसने मेरा जीना हराम कर रखा है। "

मुखिया," पर यह सोनू तो कह रहा है कि तुमने खेत की मेड को काटकर पानी की पाइप इसके खेत की ओर कर दिया। "

धनीराम," मैंने खेत की मेड नहीं तोड़ी और पानी को कौन रोक सकता है ? कहीं भी चला जाए। "


सोनू," मुखिया जी, मेरे खेत की मेड़ इसी ने जानबूझकर तोड़ी है। "

धनीराम," ऐसे कैसे ? मेड़ तोड़ते हुए देखा क्या तुमने मुझे ? "

सोनू," अरे ! तुम्हें कहां तक देखूं ? रोजाना कुछ ना कुछ करते ही रहते हो। "

धनीराम," मुखिया जी, मैं कहता हूं यह मेड इस सोनू ने ही तोड़ी है और इल्जाम मुझ पर लगा रहा है। "

मुखिया," इसका मतलब मेड़ किसने तोड़ी है ? यह तुम दोनों को ही नहीं पता ? पर सोनू के खेत में तो पानी तुम्हारी गलती से कारण भरा है ना। "

धनीराम," मुखिया जी... इसमें मेरी कोई गलती नहीं है। मैं अपने खेत की सिंचाई करने के लिए पानी चलाकर चला गया था। अब पानी है बहता हुआ चला गया सोनू के खेत में। पानी सीमा के बंधन में थोड़ी ना बंधता है। "


मुखिया," हां, बात तो तुमने बिल्कुल सही कही। पानी सीमा में नहीं बंधता। "

धनीराम," वही तो मैं कह रहा हूं। पानी है चला गया उसके खेत में। अब इसमें मैं क्या करूं ? "

मुखिया," अरे नत्थू ! जरा सुन... तेरा खेत धनीराम के खेत के दूसरी ओर जुड़ा हुआ है ना। "

नत्थू," हां मुखिया जी। "

मुखिया," ऐसा कर... कल तू अपने खेत में पानी के पाइप को धनीराम के खेत की ओर करके कहीं गुम हो जा। "

धनीराम," यह क्या कह रहे हो ? इस तरह तो पानी मेरे खेत में आ जाएगा। "

मुखिया," नत्थू तो अपने खेत में पानी चला रहा है। मगर तुम्हारे खेत में चला गया तो क्या हो गया ? वह कोई बंधता थोड़े ही है। "

धनीराम," खबरदार तुमने ऐसा किया तो..."

मुखिया," अपनी गलती मान ले धनीराम। सभी मिलकर काम करोगे तभी काम चलेगा। वरना एक दूसरे का ही नुकसान करोगे। "

धनीराम," (मन ही मन में)," माफी मांगने में ही भलाई है। इस सोनू को तो मैं बाद में देख लूंगा।

धनीराम," मुझे माफ कर दो मुखिया जी। आगे से ऐसा कुछ नहीं करूंगा। "

मुखिया," ठीक है सोनू, सुन लिया ना। "

सोनू हां में सिर हिलाता है। सभी लोग चले जाते हैं।


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धनीराम (अकेले में)," सोनू, तुमने पंचायत के सामने मुझे माफी मंगवा कर अच्छा नहीं किया। सबके सामने बेइज्जती करा दी। मैं तुमसे इसका बदला जरुर लूंगा। "

एक आदमी जल्दी-जल्दी जाते हुए...
धनीराम," ए भैया ! कहां भागे जा रहे हो ? जरा सुनो तो... "

आदमी," भैया, अभी तो मैं थोड़ी जल्दी में हूं। "

धनीराम," अरे ! रुको तो। कभी-कभी हमसे भी बात कर लिया करो। "

आदमी," अच्छा भैया... कहो जल्दी क्या बात है ? "

धनीराम," तुम सब्जी वाले कांट्रेक्टर हो ना ? "

आदमी," हां मैं शहर में सब्जियां सप्लाई करता हूं। "

धनीराम," हां हां, पता है। इस बार मेरे खेत की अच्छी फसल होने वाली है। अगले हफ्ते से ही तैयार हो जाएगी। तुम खरीदो तो...। "

आदमी," ना ना भाई, रहने दो। मैं तो इस गांव से केवल सोनू भैया की ही सब्जियां खरीदता हूं। "


धनीराम," अरे इस बार मेरी भी ले लो। मजा आ जाएगा इस
बार। "

आदमी," भाई, तुम लोगों की सब्जी आधे दामों में भी नहीं बिकती लेकिन सोनू की सब्जी बढ़िया किस्म की होती है। दुगनी दामों में भी आसानी से बिकती है। शहर में उसकी सब्जियों की बहुत डिमांड रहती है। समझे ? "

धनीराम," अच्छा चलो ठीक है। तुम सोनू की ही सब्जी खरीदो। पर मुझे भी दिमाग में रख लेना। अगर कभी जरूरत पड़े तो हाजिर हूं। "

आदमी," हां भैया जरूर... अगर जरूरत पड़ी तो तुमसे ले लेंगे। अभी मैं चलता हूं ठीक है ना। "

धनीराम (अकेले में)," अरे ! जरूरत कैसे नहीं पड़ेगी। पर मैंने तो कभी सोचा ही नहीं था कि इस सोनू की सब्जी दोगुने दामों में भी आसानी से बिक जाती है। इस बार नोट मैं गिनूंगा। और सोनू... तुमसे तो मैं बदला लेकर ही रहूंगा। "

सोनू की पत्नी," क्या हुआ ? आज आप कुछ ज्यादा ही थके हुए लग रहे हो। "

सोनू," नहीं, ऐसा कुछ नहीं है। बस हल्की सी थकान है। "

सुबह सोनू पलंग से उठा और चक्कर खाकर वहीं गिर गया।

सोनू की पत्नी," अरे ! क्या हुआ आपको ? "

वह डॉक्टर को बुलाती है। "

सोनू की पत्नी," यह तो भट्टी की तरह तप रहे हैं। "

डॉक्टर," घबराओ नहीं, इन्हें वायरल है। कोई और कमजोरी नहीं है। 10 दिन में आराम आएगा तब तक खूब आराम करना। और हां, खाने पीने का अच्छे से ध्यान रखना वरना ठीक होने के बाद भी खड़े होने पर गिर जाएंगे। "

सोनू की पत्नी," जी डॉक्टर साहब, मैं इनका पूरा ध्यान रखूंगी। "

डॉक्टर के जाने के बाद सोनू पलंग से उठने की कोशिश करता है लेकिन उठ नहीं पाता। 

सोनू की पत्नी," यह क्या कर रहे हो ? आपने सुना नहीं डॉक्टर ने क्या कहा ? यह बुखार शरीर तोड़ देता है। "

सोनू," पर काम कौन देखेगा ? "

सोनू की पत्नी," कोई बात नहीं अगर इस बार नुकसान हो गया तो। कुछ नहीं होगा। आप अपनी मर्जी से बीमार थोड़े ना हुए हो। सेहत रहेगी तभी तो काम कर पाओगे ना। "

शहर से आया कांट्रेक्टर सोनू के पास आता है।

कांट्रेक्टर," कैसे हो सोनू ? "

सोनू की पत्नी," यह तो उठ भी नहीं पा रहे थे। अब कम से कम उठ तो पा रहे हैं। "

सोनू," इस बार की फसल का तो..."

कांट्रेक्टर," इस बार तो तुम्हारी फसल तैयार भी नहीं हुई। "

सोनू," इस बार थोड़ी देरी हो गई। "


कांट्रेक्टर," कोई बात नहीं। इस बार मैं फसल धनीराम से ले लूंगा। तुम अपना ध्यान रखो। भाई, सेहत है तो पूरा जहान है समझे। "

कांट्रेक्टर वहां से धनीराम के पास जाता है।

कांट्रेक्टर," हां भाई, तुमने कहा था ना कि तुम मुझे सब्जियों की सप्लाई करना चाहते हो। "

धनीराम," हां हां, पर आप तो सब्जियां सोनू से लेते हो ना। "

कांट्रेक्टर," हां, पर उसकी तबीयत खराब है और अभी तक उसकी सब्जियां खेत में ही लटक रही है। पता नहीं कितना टाइम और लगेगा 

और शहर से डिमांड आ रही है। तुम अपनी फसल मुझे दे दो नहीं तो मेरा बहुत नुकसान हो जाएगा। "

धनीराम," अरे ! ऐसा मत कहो। मेरे होते हुए आपको कोई नुकसान नहीं होगा। आप चाहो तो मेरी पूरी की पूरी फसल उठा लो। "

कांट्रेक्टर," हां हां, क्यों नहीं ? "

कांट्रेक्टर के जाने के बाद...

धनीराम," वाह ! इस बार तो मजा आ गया। पूरी फसल डबल दामों में गई है। अगर यह सोनू ना हो तो यह कांट्रेक्टर हर बार मेरी फसल को अच्छे दोमों में खरीद ले। "

4 दिन बाद...

सोनू," अब मैं ठीक हो गया हूं। कल से मैं खेत पर जाकर सब कुछ संभाल लेता हूं। "

सोनू की पत्नी," ठीक है। पर आप ज्यादा चिंता मत ना करना। "

सोनू," अपना ध्यान तो रखना ही होगा। "

अगले दिन सोनू खेत से सारी सब्जियां कटवा लेता है। दूर से अपने खेत में खड़ा धनीराम यह सब देख रहा था।

धनीराम," अरे ! यह सोनू का बच्चा ठीक हो ही गया आखिर। बीमारी में मर ही जाता तो अच्छा होता। "

सोनू (अपने मजदूरों से)," सुनो... यह सब्जियां अब जल्दी खराब हो जाएंगी। शहर जाते-जाते यह सड़ जाएंगी। मैं तुम्हें कल सुबह बताता हूं कि इनका क्या करना है ? "

धनीराम," इसे रास्ते से हटाने के लिए कुछ तो करना पड़ेगा। वरना यह कांट्रेक्टर दोबारा मेरी सब्जियां अच्छे दामों में नहीं खरीदेगा। "

रात के अंधेरे में धनीराम कंबल ओढ़कर सोनू की सब्जियों के पास आकर खड़ा हो गया।


धनीराम," बेटा सोनू... तेरा नाम और काम दोनों बर्बाद होने का समय आ गया है। तूने सबके सामने मुझसे माफी मंगवाई थी ना। अब तू तो किसी से माफी मांगने के लायक भी नहीं रहेगा। चल बेटा... दिखा दे अपना जलवा। "

धनीराम एक पाउडर सब्जियों पर छिड़ककर वहां से चला जाता है।

अगले दिन धनीराम गांव में गया। वहां दो रेडियों पर खूब भीड़ लगी थी। उसने जाकर देखा।

धनीराम (मन में) ," अरे यह दोनों मजदूर तो कल सोनू के खेत में थे। यहां सब्जी क्यों बेच रहे हैं ? "

धनीराम," ओ भाई ! तुम यहां हाट में सब्जी... क्या माजरा है ? "

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मजदूर" सोनू भैया ने कहा है कि यह सब्जियों जल्दी खराब हो जाएंगी इसीलिए इन सभी सब्जियों को गांव की हाट में आधे दामों में बेचने को बोला है। "


धनीराम (मन ही मन में)," हे भगवान ! मैंने तो इन सब्जियों पर पाउडर छिड़का हुआ है। पर मुझे क्या ? मेरे घर में तो मेरे खेत की उगी हुई सब्जी ही खाते हैं। जो भी सोनू की सब्जी खाएगा, उसे अपने आप पता चल जाएगा। 

जब सब बीमार होंगे तब सोनू को भी पता चल जाएगा। देखता हूं सोनू इन सब लोगों को क्या जवाब देगा ? बेचने दो। चलो अच्छा है सोनू की बदनामी पूरे गांव में होगी। "

धनीराम," हां हां, बेचो भैया तुम। देखो... सोनू को नुकसान न होने पाए। "

धनीराम अपने खेत में एक आदमी से बात कर रहा था। तभी एक बच्चा भागता हुआ आया।

बच्चा," काका - काका जल्दी चलो। आपको काकी बुला रही है। "

आदमी," अरे बेटा ! पहले सांस तो ले ले। ऐसा क्या हुआ जो हांफते हुए बता रहा है। "

बच्चा," खाना खाने के बाद राधा उल्टियां कर रही है। "

आदमी," क्या ? राधा मेरी बच्ची, चल जल्दी चल।

धनीराम," मतलब सोनू के उल्टे दिन शुरू हो गए। "

यह कहकर वह वहां से जाने लगता है। रास्ते में उसे मुखिया मिल गया। 

धनीराम," अरे मुखिया जी ! क्या हाल है ? "

मुखिया," मैं तो ठीक हूं धनीराम। पर गांव में जाने आज क्या हो रहा है ? खाना खाने के बाद हर आदमी अस्पताल में भर्ती हो गया है और बहुतों के पेट में दर्द है। "

धनीराम," कुछ पता चला क्या खाया था ? "

मुखिया," बस इतना पता चला है कि सब लोगों ने एक ही जगह से सब्जियां खरीदी थी आधे दामों में। "

धनीराम," सोनू की सब्जी भी आधे दामों में बिक रही थी। "

मुखिया," वही सब ने वही बताया है। "

धनीराम," मुझे तो कुछ गड़बड़ लग रही है। वैसे तो यह सोनू अपनी सब्जी शहर ही भेजता है। इस बार कुछ तो जरूर होगा जो इसने गांव में बेच दी। बताओ... कितने आदमी अचानक से बीमार हो गये ? "

धनीराम," मुझे भी ऐसा ही लग रहा है। उसी की शिकायत करने के लिए जा रहा हूं। "

मुखिया के जाने के बाद धनीराम मन ही मन में ' वाह ! अब आएगा मजा आयेगा ' कहता है। जब धनीराम घर आया तो उसकी पत्नी भागते हुए आई।

धनीराम की पत्नी," सुनिए जी, मनु को कितनी देर से उल्टी हो रही है। चलिए अस्पताल लेकर चलते हैं। "

धनीराम," उल्टी ? क्या खिला दिया ऐसा ? "

धनीराम की पत्नी," यह भिंडी खाने की जिद कर रहा था। घर में थी नहीं तो हाट से आधे दामों में खरीदकर बना ली। "

धनीराम," चलो जल्दी अस्पताल चलो। 

वो दोनों बच्चे के साथ अस्पताल पहुंचते हैं। अस्पताल में अफरा-तफरी मची हुई थी। " 

धनीराम," डॉक्टर साहब, मेरे बेटे को देखिए वह बार-बार बेहोश हो रहा है। "

डॉक्टर," देखो यहां सारे बेड फुल है। इसे किसी दूसरी जगह या शहर लेकर जाओ। "


धनीराम," पर तब तक तो इसकी तबीयत बहुत खराब हो जाएगी। "

डॉक्टर," तुम मेरी मजबूरी समझो। जिसे दवाई दी जा रही है उसे भी बिल्कुल आराम नहीं आ रहा और पता भी नहीं चल पा रहा कि इनकी तबीयत क्यों बिगड़ रही है ? अगर पता चल जाता तो शायद हम इलाज भी कर पाते। "

तभी मनु जमीन पर गिर गया। 

धनीराम की पत्नी," मनु, ओ मनु ! क्या हुआ तुझे ? उठ ना बेटा। "

पर वह नहीं उठाता। डॉक्टर उसकी नब्ज चेक करता है।

डॉक्टर," यह तो बहुत बुरी तरह बीमार है। मेरी बात ध्यान से सुनो। इसे अगले 3 घंटों में शहर के किसी बड़े हॉस्पिटल में ले जाकर इलाज करवाओ। वहां बीमारी पकड़ में आने पर इसका इलाज हो सकता है। यहां तो..."

धनीराम," डॉक्टर साहब, मैं आपको सब सच सच बताता हूं कि यह कौन सी बीमारी है ? वह डॉक्टर साहब को सब कुछ बता देता है। 

डॉक्टर," अच्छा हुआ जो तुमने हमें समय पर सब कुछ बता दिया। अब यहीं पर सबका इलाज हो जाएगा। "

डॉक्टर मनु और बाकी लोगों को इंजेक्शन लगाता है। तभी पुलिस वाला वहां आता है और डॉक्टर के साथ अंदर कमरे में चला जाता है। 

पुलिसवाला," हां भाई, मेरे साथ चलना होगा तुम्हें। "

धनीराम," जी साहब, मैं आपके साथ चलने को तैयार हूं। मुझे अपनी गलती का एहसास हो चुका है। "

तभी मुखिया जी और सोनू भी वहां पर आ गए। 

मुखिया," लेकिन धनीराम तुमने ऐसा गलत काम क्यों किया ? 

धनीराम," मुखिया जी, मेरी मति मारी गई थी। मैं हर हाल में इस सोनू से ज्यादा कमाई करना चाहता था इसलिए इसे नुकसान पहुंचाने का कोई मौका नहीं छोड़ता था। लेकिन इस बार सब किया धरा मुझ पर आ पड़ा। "


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सोनू," धनीराम, मैंने कभी किसी का बुरा नहीं चाहा फिर पता नहीं तुम मेरे पीछे क्यों पड़े थे ? अब तुम्हारी एक गलती की सजा गांव के सभी लोगों को भुगतनी पड़ रही है और खुद तुम्हारे बच्चे को भी। "


धनीराम," मुझे सब लोग माफ कर दीजिए। मुझसे बड़ी बहुत बड़ी भूल हो गई।

मुखिया," इसीलिए कहते हैं कि अगर दूसरे का बुरा सोचोगे तो अपना बुरा कब हो जाए कोई नहीं जानता। सोनू ने हमेशा सबका भला सोचा है। इसीलिए कर भला तो हो भला। "



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Pradeep Kushwah

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