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बेवकूफ व्यापारी | Bewkoof Vyapari | Hindi Kahaniya | Moral Stories | Bed Time Story | Hindi Kahani

बेवकूफ व्यापारी | Bewkoof Vyapari | Hindi Kahaniya | Moral Stories | Bed Time Story | Hindi Kahani
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Mar 18, 2023
हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई मजेदार Series में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है - " बेवकूफ व्यापारी "  यह एक Moral Story है। अगर आप भी Hindi Kahaniya, Hindi Story या Bed Time Story पढ़ने का शौक रखते है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।

बेवकूफ व्यापारी | Bewkoof Vyapari | Hindi Kahaniya | Moral Stories | Bed Time Story | Hindi Kahani

Bewkoof Vyapari| Hindi Kahaniya| Moral Stories | Bed Time Story | Hindi Kahani 



 बेवकूफ व्यापारी 

एक गांव में रतन अपनी मां (शीला) और पत्नी (शर्मीली) के साथ रहता है। रतन दिमाग से कमजोर, आलसी और बुद्धू है। 

एक दिन सुबह के 8:00 बज गए। रतन की पत्नी शर्मीली ने उसे उठाया। 

शर्मीली," अजी सुनते हो, सुबह हो गई है। अब तो उठ जाइए। सूरज सर पर चढ़ गया है। कब उठोगे ? "

रतन," यह तो रोज होता है। मुझे सोने दो। मैंने तुमसे कितनी बार कहा है, मुझे इस तरह मत उठाया करो ? "

शर्मीली," इतनी देर तक कोई नहीं सोता है। सभी उठकर अपने अपने काम पर चले गए हैं। "

रतन," मैं रोजाना काम पर जाता हूं और तुम दोनों की डांट भी खाता हूं। इसलिए मेरा काम पर ना जाना ही बेहतर है। "

तभी उसकी मां शीला वहां आती है। 

शीला," अरे ! उठ जा मेरे लाल... उठ जा। जीवन चलाने के लिए कमाना बहुत जरूरी है। "

रतन," और इस सूरज से कहो यह थोड़ा देर देरी से आया करे। अभी तो सोया था। करवट लेते ही तुम दोनों शुरू हो गई। ठीक है मां, मैं काम पर जा रहा हूं। "

शीला," जल्दी से नाश्ता कर और कुछ काम देख। "

रतन," मां, आप मुझे छोटा बच्चा समझती हैं। लेकिन मैं बहुत समझदार हूं। आज मुझे कोई भी पागल नहीं बना सकता है हां। "

शीला," यह बहुत अच्छी बात है। लेकिन फिर भी संभल कर जाना। "

शर्मीली," लेकिन ध्यान से जी... आपके भोंदूपने का सब लोग फायदा उठाते हैं। "

रतन गांव में काम तलाशने के लिए निकल गया।

लाला (दुकानदार)," अरे ! आओ रतन। कहो... क्या हाल है ? "

रतन," अरे ! लाला जी, एकदम चकाचक। कुछ काम धाम भी कर लिया करो। "

लाला," क्या बोले जा रहा है रतन ? पूरा पागल हो गया है क्या ? यहां दुकान पर क्या झक मार रहा हूं ? काम ही पर हूं। "

रतन," अरे लाला जी ! थोड़ी सी जुबान फिसल गई। मैं आपके पास काम की तलाश में आया हूं। मेरे लिए कोई काम हो तो बता दीजिए। "


लाला," सारा गांव जानता है कि तुम एक नंबर के भोंदू हो। मैं तुमको काम दे दूंगा लेकिन तुम नुकसान करके आ जाओगे। "

रतन," भोंदू होता तो क्या सुबह सुबह काम की तलाश करता ? अब मैं समझदार हो गया हूं और अब कोई नुकसान भी नहीं करूंगा हां। "

लाला," यह बात तो सही कही तूने। 

लाला (मन में)," दुकान में रखी रखी ये रजाईयां सड़ जाएंगी। इस रतन से यह काम ही करवा लेता हूं। "

रतन (मन में)," लगता है मोटा बातों में आ गया। शर्मीली और मां बिना बात के रोज ताने मारते रहते हैं। देखो... मैंने कैसे अपनी बुद्धि चलाई ? "

लाला," यह बहुत अच्छी बात है। मैं तुमको दो रजाई देता हूं। तुम इनको बेचकर आओ और हां ध्यान रहे, इन्हें हजार रुपए का बेचना है। 

इससे कम में मत बेचना। दोनों रजाई बेचने के बाद तुम मुझे दो हजार रूपये लाकर दोगे। फिर मैं तुम्हें आज की झाड़ी दूंगा। "

रतन," अरे वाह ! आप बिल्कुल फिक्र मत कीजिए। मैं पूरे हजार रुपये में बेच दूंगा। "

रतन दोनों रजाइयां उठाकर गांव में चला गया। 

रतन (आवाज लगाते हुए)," रजाई ले लो रजाई। अरे ! बहुत अच्छी-अच्छी रंगीली रजाइयां। अरे भैया ! ठंड से बचाएं गर्मी बढ़ाएं, नरम नरम रजाई। "

आदमी," अरे ओ भैया ! रजाई वाले... रुको तो जरा। एक रजाई कितने की है भैया ? "

रतन," पहले आप रजाई तो देख लीजिए। एकदम नरम रजाई है और दाम भी बढ़िया है। "

आदमी," हां हां भाई, दिखाओ दिखाओ। "

रतन," यह देखो, यह बहुत अच्छी रजाई है। आप इसे लेकर चाहे रेगिस्तान में चले जाओ, बिल्कुल ठंड नहीं लगेगी। 

बता रहा हूं ना... भरी गर्मियों में आपको इस रजाई की जरूरत पड़ेगी हां।


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आदमी (मन में)," रेगिस्तान में..?? लगता है यह आदमी एक नंबर का बुद्धू है। तभी यह इतनी बहकी बहकी बातें कर रहा है। इसका अभी बुद्धू बनाता हूं। "

आदमी," अच्छा भाई... यह इतनी अच्छी रजाई है क्या ? "

रतन," हां भाई, मालिक ने मुझे पूरे दो हजार रूपये लाकर वापस देने को कहा है। "

आदमी," फिर तो मुझे यह दोनों रजाई दे दो। लेकिन मैं तुम्हें केवल इसके ₹1500 रुपए ही दूंगा। "

रतन," नहीं नहीं भैया, ऐसे कैसे..?? "


आदमी," अरे ! क्या हुआ..?? इससे ज्यादा पैसे मैं नहीं दूंगा। इतने में ही खरीद सकता हूं। "

रतन," नहीं नहीं, मालिक ने बोला था कि हजार में ही बेचनी है। इसलिए मैं हजार में ही दूंगा। "

आदमी," क्या..?? 

आदमी (मन में)," लगता है बात बन गई। "

आदमी," तुम दोनों रजाई मुझे हजार रुपए में दे दोगे ? "

रतन," हां भैया, इससे कम में नहीं दूंगा। "

आदमी," ठीक है, यह हजार रुपये लो और मुझे दोनों रजाइयां दे दो। "

आदमी रजाई खरीद कर चला गया। 

रतन," अरे वाह ! मजा आ गया। पहला ग्राहक मिला और पहली ही बार में मैंने मुनाफे में रजाई बेच दी। मालिक ने बोला था कि हजार रुपए में रजाई बेचनी है और दो हजार रूपये लेकर आने हैं। 

लेकिन यह क्या..?? मेरे पास तो सिर्फ हजार रुपए बचे हैं। अब मालिक को दो हजार रूपये कहां से लाकर दूंगा ? मेरा फिर से बुद्धू बना दिया। 

नहीं नहीं, शायद मालिक मेरा दिमाग देखना चाहते हैं इसलिए ऐसा कहा होगा। अब मैं हजार रुपए के दो हजार रूपये बनाकर ले जाऊंगा। "

रतन जेब में हजार रूपये लेकर घूमता रहा लेकिन उसे कोई तरीका नहीं सूझ रहा था। 

रतन," मैं अब क्या करूंगा ? मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा। "

रतन," अरे भाई ! तुमने एक आदमी को देखा जो रजाई लेकर जा रहा हो ? "

आदमी," भाई, अभी थोड़ी देर पहले तुम ही तो रजाई लेकर जा रहे थे। "

रतन," अरे ! बुद्धू हो क्या ? मैं किसी और की बात कर रहा हूं। "

आदमी," नहीं भाई, नहीं देखा लेकिन क्या करना है ? आज दोबारा से कोई बुद्धू बना गया क्या ? "

रतन," भाई, वह मेरी एक रजाई फ्री में ले गया और बातों से बुद्धू बना गया। "

आदमी," उसकी कोई जरूरत नहीं है; क्योंकि तुम तो हो ही बेवकूफ। "

लाला की दुकान पर...
लाला," अरे ! आओ रतन। बहुत जल्दी ही तुमने दोनों रजाई बेच दीं। लाओ मेरे दो हजार रूपये दो। "

रतन (हजार रूपये दिखाते हुए)," इतने ही मिले हैं लाला। आपकी रजाई काफी पुरानी हो गई थी इसलिए हजार में ही बेचनी पड़ी। "

लाला," सच-सच बताओ नहीं तो अच्छा नहीं होगा। मेरा बुद्धू बना रहे हो। रुको तुम। राका... जरा इस रतन से सच उगलवाना। "

राका," अरे लाला जी ! इसकी अच्छे से खातिरदारी कर देता हूं हां। "


रतन," अरे क्या कर रहे हो ? छोड़ो मुझे। "

राका ने बेचारे रतन की अच्छे से धुलाई कर दी।

पिटने के बाद...
 रतन," लाला, इतनी खातिरदारी की क्या जरूरत थी ? "

इसके बाद रतन घर जाता है।

घर पर... 
शर्मीली (शिकायत करते हुए)," कहा था ना कि समझदारी से काम करना। आ गए ना बुद्धू बनकर। "

रतन," समझदारी से ही तो कर रहा था शर्मीली। लेकिन कमबख्त चाहते ही नहीं कि मैं समझदार बनूं। हाय..! हाय बहुत दर्द हो रहा है। "

अगले दिन सुबह...
रतन," मेरे लिए पानी लेकर आओ। "

शर्मीली," लेकर आती हूं। वैसे कल रात की धुलाई के बाद गला तो सूख ही रहा होगा। "

रतन," वह कल वाली बात की थी। अब बिल्कुल बदल गया है। अब इस बारे में कोई सवाल जवाब नहीं करेगा। " 

शर्मीली," अच्छा, तो यह बताओ आज भी कहीं जाओगे बुद्धू बनने के लिए ? "

रतन," रतन को बेवकूफ बनाना नामुमकिन ही नहीं बल्कि मुमकिन है। "

शर्मीली," शायद आप कुछ उल्टा बोल गए हो। "

रतन," शायद रतन की समझदारी किसी से देखी नहीं जा रही है ना ? "

शर्मीली," अच्छा समझ गई। आज ध्यान से काम करके आना। यह कुछ रुपये डाकखाने में जमा करवा देना और सौ रुपये का राशन लेकर आना। ठीक है, समझ गए..? "

रतन," हां, ठीक है। मां, मुझे आशीर्वाद दो। "

शर्मीली," हां मां आशीर्वाद की तो इन्हें सख्त जरूरत है वरना आज भी इन्हें कोई बुद्धू बना जाएगा। "


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रतन गांव से बाहर जा रहा था तभी उसे उसका पुराना दोस्त चंपक मिल गया।

चंपक," अरे भाई ! कैसे हो तुम ? इतने दिन बाद दिखे हो। "

रतन," अरे ! चंपक तुम... कब आए शहर से ? बड़ा ही टिचिंग टिचिंग लग रहा है। काला चश्मा, लाल कमीज, क्या बात है ? "

चंपक," तू अपना बता भाई, तेरा क्या है ? पहले जैसा ही है या सुधर गया। "

रतन," जो भी काम करता हूं, सब बेवकूफ बना जाते हैं। ससुरा पूरे गांव वाले बुद्धू बनाने लगे हैं यार। 

अभी डाकघर जा रहा था। मां ने कुछ पैसे जमा करने के लिए लिए दिए थे। अब कोई भी मुझे बुद्धू नहीं बना सकता। "


चंपक (मन में)," यही तो सुनना चाह रहा था। दूसरों को बुद्धू बनाना ही तो मेरा काम है। "

चंपक," अरे ! आज से तुम्हारा मजाक कोई नहीं बनाएगा। तुम्हारा दोस्त जो वापस आ गया है। भैया, मेरे पास तुम्हारे लिए कुछ खास है। "

चंपक (मन में)," अरे ! इसे अब लूट लेता हूं। अच्छा मौका है। "

रतन," अच्छा-अच्छा... क्या है बताओ ? जरा मुझे भी बताओ भैया। " 

चंपक," मैं तुम्हें कुछ ऐसे बीज दे सकता हूं जिन्हें बोने पर सोना निकलेगा। "

रतन," क्या सच में..?? " 

चंपक," और नहीं तो क्या ? मैं झूठ बोल रहा हूं ? अगर तुम सोने के बीच नहीं खरीदना चाहते तो कोई बात नहीं, मैं किसी और को बेच दूंगा। "

रतन," नहीं नहीं, सोने के बीच मुझे दे दो। मैं तुमको सारे रुपए देता हूं। "

चंपक," ठीक है, यह 1 किलो सोने के बीज हैं। अपने खेत पर जाकर बो दोगे तो सोने के पेड़ बाहर निकल आएंगे। लेकिन तुम इनका ध्यान भी रखना और समय पर पानी भी लगाना पड़ेगा भैया हां। "

रतन," मुझे यह बीज गेहूं के क्यों लग रहे हैं भैया ? "

चंपक," अरे ! यह मैंने जान बूझकर गेहूं के बीज के रंग के बना दिए हैं। तुम खुद सोचो, अगर यह सबको पता होगा कि यह सोने के बीज हैं तो सब खरीदना चाहेंगे कि नहीं ? इसलिए मैं यह छुपाकर रखना चाहता हूं। ठीक है...। "

रतन," धन्यवाद भैया ! यह आपने मुझे दे दिया। अब मैं घर जा रहा हूं। मैं कल इनको बो दूंगा। "

घर की तरफ आते हुए...
रतन," आप देखना मां और शर्मीली, सबको मेरी बुद्धिमानी पर नाज होगा हां। और हो भी क्यों ना..?? 

रतन, तुमने काम ही इतनी होशियारी का किया है। अपने दोस्त चंपक को बातों में फंसाकर उससे सोने के बीज ले लिए। वाह रे ! रतन... "

शीला," बेटा, इतनी देर में आया है। "

रतन," मां, आज तेरे बेटे ने बहुत बड़ा काम किया है। "

शीला," ऐसा क्या कर दिया ? "

रतन," मुझे सोने के बीज मिले हैं। मैं यह सोने के बीज खेत में बो दूंगा और फिर हम बहुत जल्दी अमीर हो जाएंगे। "

शीला," हम्म, लगता है आज सच में यह पागल हो गया है। बहू, अरे ! ओ बहू... कहां गई ? इसको पानी पिलाओ। "

शर्मीली," हां। "

शर्मीली," इससे अच्छा, सुबह बाहर इन्हें काम पर नहीं भेजते तो ज्यादा अच्छा रहता। 


लेकिन अब पागलपन का इलाज भी करवाना पड़ेगा। हमारे पास तो इतने पैसे भी नहीं है। "

रतन," अब हमें पैसों की जरूरत नहीं है; क्योंकि अब तो हमारे खेत में सोना होगा सोना हां। 

तुम सब मुझे बुद्धू समझते थे ना ? देखा... मैंने अपनी अक्ल लगाकर कैसे सोने के बीज हासिल कर लिए हैं ? "

रतन ने आज दिन भर की बात अपनी मां और अपनी पत्नी को बताई। 

शीला," अच्छा... तो अब मुझे समझ आया। "

शर्मीली," अब हम ही कुछ कर सकते हैं। "

शर्मीली ने अपनी सास के कान में कुछ कहा।

रतन," तुम दोनों क्या कान में खुसुर फुसुर कर रहे हो ? "

शीला," कुछ नहीं बेटा, मैं कह रही थी मेरे पास और भी सोने के बीज हैं। "

रतन," क्या मैं सच में..?? "

शीला," हां, मैंने छुपाकर रखे थे। अब कल मिलकर यह सोने के बीज खेतों में बो देंगे जिसके बाद हमारी धरती सोना उगलेगी। "

रतन," मैं बहुत खुश हूं। अब जल्दी से सुबह हो जाए बस। "

अगले दिन सभी खेत पर पहुंचे और पूरे खेत में गेहूं बो दिए लेकिन रतन उसे सोना समझ रहा था इसलिए उसकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। 

शीला," अब सोने के बीज बो दिए हैं। लेकिन अब यह बात किसी को मत बताना। "

रतन," मां, मैं किसी को नहीं कहूंगा। "

शीला," हमें खेत की सिंचाई, नराई करनी होगी और पशुओं से देखभाल भी करनी होगी। "

रतन," मां, आप बेफिक्र रहो। मैं अब सारा काम खुद देख लूंगा। "

रतन खेत में मेहनत करने लगा। शर्मीली खेत में ही रतन को खाना देने आती।


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रतन ने अब सबसे बातें करनी बंद कर दी थी इसलिए अब कोई भी उसका फायदा नहीं उठा पा रहा था। रतन सिर्फ अपने काम पर ध्यान दे रहा था और इसी तरह तीन चार महीने बीत गए।

फिर एक दिन शीला खेत पर आई।
रतन," हमारे साथ धोखा हुआ है मां। "

शीला," क्या हुआ ? सब कुछ ठीक तो चल रहा है। "

रतन," मां, खेतों में देखो... सोने की नहीं बल्कि गेहूं की फसल है यह तो। "

शीला," फसल पकने वाली है। तुम इसके अंदर देखना सोना ही निकलेगा। "


रतन," मां,अब आप भी बुद्धू बनाने लगी हो। "

शीला," कई बार दूसरा हमारा नुकसान करके खुश होता है। लेकिन वह जानता नहीं है कि उसने अनजाने में ही हमारे लिए एक और नया रास्ता खोल दिया है। तुम फसल पकने तक का इंतजार करो। "

शीला चली गई। रतन फिर से काम पर लग गया। खेत में फसल का सारा काम हो गया। लेकिन खेत में गेहूं के ढेर लगे थे।

शीला," बेटा, शायद हमारे साथ सच में धोखा हुआ है। यहां तो सोना नहीं है। "

रतन," नहीं मां, मुझे समझ आ गया कि असली सोना यही है। अब से मैं यही काम करूंगा और कोई पागल भी नहीं बना पाएगा मुझे।

इस बार पूरा परिवार खुश हुआ। रतन अब खूब मेहनत से खेती करने लगा और सभी खुशी-खुशी रहने लगे।


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Pradeep Kushwah

हेलो दोस्तों ! मैं हूं आपका अपना दोस्त , प्रदीप। जब भी आपको कुछ नया सीखना हो या फिर किसी तरह का मनोरंजन करना हो तो हमें जरूर याद करें। हम आपकी सेवा में हमेशा तैयार हैं। अपना प्यार बनाए रखें।