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लालची किसान और मंत्री | Lalachi Kisan Aur Mantri | Hindi Kahaniya | Moral Stories | Bed Time Story | Hindi Kahani

लालची किसान और मंत्री | Lalachi Kisan Aur Mantri | Hindi Kahaniya | Moral Stories | Bed Time Story | Hindi Kahani
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Mar 18, 2023
हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई मजेदार Series में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है - " लालची किसान और मंत्री "  यह एक Bedtime Story है। अगर आप भी Hindi Kahaniya, Moral Story in Hindi या Hindi Fairy Tales पढ़ने का शौक रखते है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।

लालची किसान और मंत्री | Lalachi Kisan Aur Mantri | Hindi Kahaniya | Moral Stories | Bed Time Story | Hindi Kahani

Lalachi Kisan Aur Mantri| Hindi Kahaniya| Moral Stories | Bed Time Story | Hindi Kahani



 लालची किसान और मंत्री 

लालगढ़ राज्य में एक बहुत ही उदार और दयालु राजा विक्रम सिंह राज करते थे। वे अपने राज्य में सभी लोगों की समस्याओं को सुनते और उनका निवारण भी करते। 

पूरे राज्य में राजा विक्रम सिंह अपने न्याय के लिए जाने जाते थे। सभी राज्य के निवासी अपनी समस्या को लेकर राजा के पास ही आते थे।

एक दिन...
राजा," मंत्री क्या खबर है ? राज्य में सब कुछ सब कुशल तो है ? बगल के राज्यों से कोई खबर या सूचना ? "

मंत्री," जी महाराज, अपने राज्य में सब कुशल है और पड़ोसी राज्य में भी अभी शांति है। परंतु महाराज, एक दुखद सूचना है। "

राजा," क्या कहा मंत्री ? दुखद सूचना... आखिर क्या है सूचना, बताओ हमें ? "

मंत्री," वो महाराज, कल रात एक राज्य का निवासी महल के बाहर आया था। वह बहुत ही दुखी प्रतीत हो रहा था। 

महाराज, उसकी इच्छा आप से मिलने की थी। परंतु हमारे सैनिकों ने उसे महल के अंदर आने ही नहीं दिया। "

राजा," क्या कहा महामंत्री ? कोई दुखी व्यक्ति, वो भी हमारे ही राज्य का हमारे महल के द्वार पर आया था और उसे अंदर आने नहीं दिया गया। आखिर क्यों..?? सैनिकों को बुलाया जाए। "

तभी दो सैनिक महाराज के पास आते हैं।

राजा," बोलो सैनिकों, तुमने क्यों उस व्यक्ति को अंदर आने नहीं दिया ? "

सैनिक," महाराज, हमें क्षमा कर दीजिए। हम तो आपके ही आदेश का पालन कर रहे थे। आप अपने कक्ष में विश्राम कर रहे थे।

और विश्राम करते समय हम आपके कक्ष में नहीं आ सकते थे महाराज। इसीलिए हमने उस व्यक्ति को अंदर आने ही नहीं दिया। "

राजा," जाओ महामंत्री और जाकर राज्य में उस व्यक्ति को ढूंढकर हमारे सामने लेकर आओ। जाओ...। "

जिसके बाद महामंत्री सेना की एक टुकड़ी के साथ अपने ही राज्य में उस व्यक्ति को ढूंढने निकल पड़ते हैं। 

तभी वह देखते हैं कि गांव के बाजार में एक छोटी सी कपड़े की दुकान के पास उन्हें एक आदमी सोनू काफी दुखी दिखाई देता है जो एक जगह पर उदास बैठा हुआ रहता है। 

उसे देखकर 
सैनिक," यह देखिए मंत्री जी, यही है... यही है वह आदमी जो उस दिन महल में आया था। "

मंत्री," चलो हमारे साथ, तुम्हें महाराज ने बुलाया है। "

सोनू," क्या सच में महाराज ने मुझे स्वयं बुलाया है ? मैं कब से उनसे मिलने की प्रतीक्षा कर रहा था ? "

इसके बाद मंत्री और अन्य सैनिकों के साथ वह आदमी राजा के महल में आता है। 


मंत्री," महाराज, यही है वो आदमी जो उस रात आपसे मिलने हमारे महल में आया था। "

राजा," क्या नाम है तुम्हारा ? हमें माफ कर दो। जब तुम हमारे महल में आए, उस समय हम विश्राम कर रहे थे जिसकी वजह से हमारे सैनिकों ने तुम्हें हमसे नहीं मिलने दिया। 

बोलो... क्या परेशानी है ? हम अवश्य ही उसका समाधान करेंगे। "

आदमी," महाराज, मेरा नाम सोनू है। मैं एक बहुत ही गरीब किसान हूं। मेरी एक पत्नी और दो छोटे-छोटे बच्चे हैं। महाराज, मेरे पास एक छोटा सा जमीन का टुकड़ा है जिस पर मैं कई वर्षों से खेती करते आया हूं। 

महाराज, लेकिन मेरे सौतेले भाई ने मुझसे वह जमीन अब छीन ली है। महाराज, मेरा भाई बोलता है कि वह जमीन पिताजी ने मरने से पहले उसे दे दी थी जिस पर अब मेरा कोई अधिकार नहीं है। 

अब मैं क्या करूं महाराज ? कई दिनों से मेरे घर में एक भी अनाज का दाना नहीं है जिसकी वजह से घर में चूल्हा भी नहीं जला है। 


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अब आप ही बताइए महाराज, मैं क्या करूं ? महाराज, मेरे घर में तो अब दो वक्त की रोटी बननी भी मुश्किल हो गई है। "

राजा," महामंत्री, इसके भाई को दरबार में अभी बुलाया जाए। "

तभी कुछ सैनिकों के साथ सोनू का भाई दरबार में आता है।

राजा," क्या नाम है तुम्हारा ? क्या यह सच है कि तुमने अपने सौतेले भाई की जमीन धोखे से छीन ली है ? "

जग्गी," मेरा नाम जग्गी है महाराज और सोनू मेरा सौतेला भाई है। लेकिन यह झूठ है महाराज, मैंने इसकी कोई भी जमीन नहीं छीनी है। वह जमीन तो मेरी ही थी। 

पिताजी ने मरने से पहले ही वह जमीन मुझे सौंप दी थी। मैंने वह जमीन इस सोनू को केवल खेती करने के लिए ही दी थी। लेकिन अब यह उस पर अपना हक जता रहा है। अब आप ही कुछ करिए महाराज। "

दोनों की बातें सुनकर विक्रम राजा बहुत सोच में पड़ जाते हैं।

राजा," महामंत्री, इन दोनों को उत्तम से उत्तम फसल के बीच दिए जाएं। " 

राजा की यह बात सुनकर दरबार में उपस्थित सभी लोग हैरान रह जाते हैं।

दरबारी," अरे भाई ! आखिर महाराज करना क्या चाहते हैं अब ? किसी भी फसल के बीज से यह कैसे पता चलेगा कि इन दोनों में से कौन झूठ बोल रहा है ? "

तभी महामंत्री दरबार में फसल के बीज लाते हैं। 

राजा," मैंने तुम दोनों की बात सुन ली है। यह तो सच है कि तुम दोनों में से कोई एक तो झूठ बोल रहा है। इसलिए अब मेरे पास केवल एक ही उपाय है। 

मैं तुम दोनों को कुछ नस्ल के आलू के बीज दे रहा हूं। तुम दोनों जाओ और उसी जमीन के टुकड़े पर अपनी अपनी फसल उगाओ। 

जिसकी भी फसल उस जमीन के टुकड़े पर सबसे ज्यादा अच्छी होगी, वही उस जमीन का असली मालिक होगा। "

यह बात सुनकर सब चौक जाते हैं। महामंत्री थोड़े थोड़े बीज उन दोनों को दे देते हैं।


सोनू," ठीक है महाराज, मैं आपकी आज्ञा के अनुसार उस जमीन के टुकड़े पर आलू के बीज बहुत मेहनत से उगाऊंगा। "

जग्गी," हां हां महाराज, मुझे भी आपका यह निर्णय स्वीकार है। महाराज, मैं भी आपके दिए हुए बीजों से अपनी जमीन पर आलू की ही खेती करूंगा। 

आप देखना महाराज, मेरी ही आलू की फसल सबसे ज्यादा अच्छी होगी। "

राजा," तो ठीक है, आज से कुछ दिन बाद जब तुम दोनों की आलू की फसल अच्छी हो जाए तब तुम अपनी अपनी फसल के आलू लेकर मेरे पास आना। 

जिसके भी आलू अच्छे होंगे वही उस जमीन का मालिक होगा और तुम दोनों में से जो झूठ बोल रहा है, उसे सजा दी जाएगी। "

इसके बाद दोनों अपने-अपने घर आ जाते हैं। सोनू अपने घर जाता है। 

सोनू की पत्नी," जी, आ गए आप..?? क्या कहा महाराज ने ? क्या वह जमीन आपको मिल गई है ? बताइए ना जी क्या हुआ और आप हाथ में यह क्या लिए हुए हैं जी ? "

सोनू," नहीं भाग्यवान, मुझे वह जमीन अभी तक हाथ नहीं मिली है। महाराज ने मुझे और जग्गी भैया दोनों को आलू के कुछ बीज दिए हैं और कहा है कि हम अपनी जमीन पर आलू की खेती करें। 
इसके बाद जिसकी भी फसल सबसे ज्यादा अच्छी होगी वही उस जमीन का असली मालिक होगा। "

सोनू की पत्नी," तो क्या हुआ जी ? मुझे आप पर पूरा विश्वास है। आपके ही आलू की फसल सबसे ज्यादा अच्छी होगी। " 

सोनू," ठीक है, मैं कल ही खेतों पर जाकर यह बीज बो दूंगा। "

सुबह होती है। सोनू अपने खेत पर जाता है और अपनी जमीन के एक हिस्से में उन बीजों को बो देता है। 

उधर जग्गी भी उस जमीन के दूसरे छोर पर उन बीजों को बो देता है। 

इसके बाद दोनों अच्छे से अपने अपने हिस्से की फसल की देखभाल करना शुरू कर देते हैं। 

दोनों बहुत मेहनत से अब रोज फसल की देखभाल कर रहे थे। देखते ही देखते आलू की फसल अब बड़ी हो जाती है। 

सोनू," अरे वाह ! मेरी आलू की फसल तो कितनी अच्छी और सुंदर दिख रही है ? अब इन्हें महाराज के पास ले जाने का समय आ गया है। कल सुबह ही इनको लेकर जाता हूं। "

फिर सुबह होती है। सोनू अपने खेत आता है और अपने आलू की टोकरी को उठाकर राजा के पास चला जाता है। 

दोनों अपनी आलू की टोकरी राजा के सामने पेश करते हैं। दोनों अपनी टोकरी के ऊपर से कपड़ा हटा देते हैं। 

राजा," अरे वाह जग्गी ! तुम्हारे आलू तो देखने में बहुत ही सुंदर लग रहे हैं। "

जग्गी," जी महाराज, मैंने दिन रात मेहनत की है। तभी इतनी अच्छी नस्ल के आलू हुए हैं। "

तभी राजा सोनू की टोकरी में से एक आलू उठाता है। 

राजा," अरे ! यह क्या..?? तुम्हारे आलू तो एकदम खराब अवस्था में नजर आ रहे हैं। क्या तुमने अपनी फसल की अच्छे से देखभाल नहीं की। 


इन्हें देखकर तो यही साबित होता है कि तुम्हारी आलू की फसल अच्छी नहीं हुई है। इसका मतलब तुम ही हमारे दरबार में आकर हमसे झूठ बोल रहे थे। "


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सोनू," लेकिन महाराज कल जब मैंने अपने आलू देखे तो बहुत अच्छी नस्ल के थे। मुझे नहीं पता कि यह अब कैसे बदल गए हैं ? 

मैं खेत में गया तो सीधा अपनी टोकरी को उठाकर आपके पास ले आया। "

मंत्री," महाराज, यह सोनू झूठ बोल रहा है। इसने अच्छे से अपनी फसल की देखभाल ही नहीं की। इसके आलू अच्छी नस्ल के थे तो अब क्या हो गया ? "

महाराज," सोनू झूठा है। "

राजा दोनों की बातें बड़े गौर से सुन रहे थे। तभी दरबार में महामंत्री आते हैं। 

मंत्री," महाराज की जय हो। "

राजा," आओ मंत्री, यह दोनों अपनी-अपनी आलू की फसल लेकर दरबार में आए हैं और सोनू ही झूठ बोल रहा था। 

इसकी आलू की फसल एकदम बेकार है। सही बोल रहे थे तुम, सोनू ही दोषी है। "

सोनू यह सुनकर बहुत दुखी हो जाता है।

जग्गी," जी, जी महाराज... सही कह रहे हैं आप। वह जमीन का हिस्सा मुझे ही मिलना चाहिए। "

मंत्री," जी नहीं महाराज, झूठ सोनू नहीं बल्कि जग्गी बोल रहा है। "

राजा," क्या कहा मंत्री ? जग्गी झूठ बोल रहा है ? वह कैसे भला ? "

मंत्री," महाराज, आपके आदेश अनुसार जो बीज मैंने इन लोगों को दिए थे, वह एक जैसे नहीं थे। "

 
राजा," एक जैसे नहीं थे, इसका क्या मतलब है महामंत्री ? हम समझे नहीं। तो फिर वह दोनों बीज कैसे थे ? बताओ... महामंत्री। "

मंत्री," महाराज, उन दोनों बीजों में से एक आलू का बीज अच्छी नस्ल का और एक खराब नस्ल का था। जो बीज हमने सोनू को दिया था, वह बीज उत्तम नस्ल का था महाराज। 

जबकि जग्गी को खराब नस्ल का बीज दिया गया था। फिर जग्गी की फसल के आलू उत्तम फसल के कैसे हो गए महाराज ? मैंने दो सैनिकों को दोनों पर नजर रखने के लिए कहा था। "

तभी महामंत्री ताली बजाते हैं और 2 सैनिक दरबार में आते हैं।

मंत्री," बताओ मेरे गुप्तचरों, तुमने रात को क्या देखा ? "

गुप्तचर," महाराज, कल रात हमने यह देखा कि यह जग्गी अपनी उसी जमीन की तरफ जाता है जहां इन दोनों ने अपनी अपनी फसल बो रखी थी।

और सोनू की फसल के हिस्से में जाकर जग्गी अपनी आलू की टोकरी से सोनू की आलू की टोकरी को बदल देता है। "


यह बात सुनकर राजा हैरान हो जाते हैं। 

जग्गी," मुझे माफ कर दीजिए महाराज। मुझसे गलती हो गई। महाराज, मुझे माफ कर दीजिए। यह सच है महाराज, पिताजी ने वह जमीन मुझे नहीं इस सोनू को दी थी।

लेकिन मेरे मन में लालच आ गया था। मैं वह जमीन इससे हड़पना चाहता था। इसलिए मैंने अपनी आलू की टोकरी को सोनू की आलू की टोकरी से बदल दिया था महाराज। मुझे माफ कर दीजिए। "

राजा," तुमने हमारे समक्ष झूठ बोला है। इसकी सजा तुम्हें अवश्य मिलेगी। जग्गी, तुमने चालाकी से सोनू की जमीन हड़पनी चाही इसके लिए तुम्हें दंड स्वरूप इस राज्य से निष्कासित किया जाता है। "

राजा की बात सुनकर जग्गी जोर जोर से रोने लगता है। 

जग्गी," नहीं महाराज, ऐसा मत कीजिए। महाराज, मुझे माफ कर दीजिए। "

राजा," देखो सोनू अब सत्य का पता चल चुका है। अब वह जमीन हमेशा के लिए तुम्हारी हुई। 

तुम उस जमीन पर फिर से खेती कर सकते हो और अपना जीवन यापन कर सकते हो। "

राजा की यह बात सुनकर सोनू बहुत खुश हो जाता है। 

सोनू," आपका बहुत-बहुत धन्यवाद महाराज ! मैं जानता था आपके इस दरबार में मेरे साथ अन्याय नहीं होगा। इसीलिए मैं बहुत उम्मीदों से आपके पास आया था। "

राजा," यह सब महामंत्री की सूझबूझ से ही हुआ है। महामंत्री, आज तुमने हमारे हाथों एक अन्याय होने से बचा लिया है। 

हम तुमसे बहुत खुश हुए। इसके बदले तुम्हें सौ सोने की अशर्फियां दी जाती है। "

मंत्री," बहुत-बहुत धन्यवाद महाराज ! महाराज की जय हो। "

सोनू," मैं आपसे कुछ मांगना भी चाहता हूं महाराज। क्या आप देंगे महाराज ? "

राजा," हां हां, बोलो सोनू क्या चाहिए तुम्हें ? हम अवश्य देंगे। "

सोनू," महाराज, मैं चाहता हूं कि आप जग्गी भैया को माफ कर दीजिए। आखिरकार यह मेरे भाई हैं। मैं नहीं चाहता कि इन्हें इतनी बड़ी सजा मिले। "

राजा," तुम वाकई में एक नेक दिल इंसान हो सोनू। ठीक है, हम तुम्हारी इच्छा जरुर पूरी करेंगे। जाओ जग्गी, तुम्हारे भाई सोनू के कहने पर हमने तुम्हें माफ किया। 

लेकिन अब कोई ऐसी हरकत मत करना वरना हम तुम्हें इससे भी कठोर दंड देंगे "

जग्गी," महाराज, मुझे माफ कर दो और तुम भी सोनू, मेरे भाई। मैंने तुम्हारे साथ कितना गलत किया ? और तुमने मुझे माफ कर दिया। मैं अपने किए पर बहुत शर्मिंदा हूं। "


सोनू," मैंने आपको माफ कर दिया है। जग्गी भैया, आपने हमेशा मुझे अपना सौतेला भाई समझा है। लेकिन मैंने कभी ऐसा नहीं समझा। 


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मैं आपको दिल से अपना भाई मानता हूं जग्गी भैया। आपको अपनी गलती का अहसास हो गया, मेरे लिए इतना ही काफी है। 

अब हम मिलकर उस जमीन पर खेती करेंगे और खुशी-खुशी साथ रहेंगे भैया। "

इसके बाद सोनू और जग्गी दोनों बड़ी मेहनत से खेती करते और प्यार से दोनों साथ साथ रहते।


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Pradeep Kushwah

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