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ईमानदार दूधवाला | Imaandar Doodhwala | Hindi Kahaniya | Moral Stories | Bed Time Story | Hindi Kahani

ईमानदार दूधवाला | Imaandar Doodhwala | Hindi Kahaniya | Moral Stories | Bed Time Story | Hindi Kahani
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Jul 18, 2023
हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई मजेदार Series में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है - " ईमानदार दूधवाला "  यह एक Moral Story है। अगर आप भी Hindi Kahaniya, Hindi Story या Bed Time Story पढ़ने का शौक रखते है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।

ईमानदार दूधवाला | Imaandar Doodhwala | Hindi Kahaniya | Moral Stories | Bed Time Story | Hindi Kahani

Imaandar Doodhwala| Hindi Kahaniya| Moral Stories | Bed Time Story | Hindi Kahani



 ईमानदार दूधवाला 

एक बार की बात है... दयालपुर गांव में ललित नाम का एक दूधवाला रहा करता था। उसके पास एक गाय थी। 

वो गांव में दूध बेचा करता था। हर कोई उसके घर से सुबह सुबह दूध लेने के लिए एक कतार में खड़े हो जाते थे। 

एक रोज़...
ललित," सुनो... ज़रा दूध निकालने वाली बाल्टी देना। जल्दी करो, वो लोग आने ही वाले होंगे। "

मोना," मैंने पहले ही तबेले के पास बाल्टी रख दी है। आप जल्दी से दूध निकालना शुरू कर दीजिये। "

ललित दूध निकालना शुरू कर देता है। धीरे धीरे लोगों की भीड़ बढ़ने लगती है। लोग आते और दूध लेकर चले जाते।

तभी एक बूढ़ा आदमी आता है।

बूढ़ा," बेटी, थोड़ा आज ज्यादा दूध मिल जायेगा क्या ? "

मौना," चाचा जी, इतना ही बचा है। "

बूढ़ा," मुझे लगता है बेटा तुम्हें कुछ और गाय खरीद लेनी चाहिए। इससे कोई भी खाली हाथ नहीं लौटेगा। "

मौना," आप ठीक कह रहे हैं, दादाजी। 

वहां अभी भी कुछ और लोग दूध लेने के लिए बचे हुए थे।

मौना," माफ़ करिये, आज दूध खत्म हो चुका है। जिनके लिए भी दूध नहीं बचा वो सब शाम को आना। "

औरत," आज फिर से दूध खत्म हो गया ? समझ नहीं आता कितनी जल्दी आऊं ? मौना, तुम कुछ और गाय क्यों नहीं खरीद लेती ? "


मौना," मैं भी यही सोच रही हूँ दीदी। मुझे भी अच्छा नहीं लगता ऐसे सबका खाली हाथ जाना। मैं इनसे बात करके देखती हूँ, क्या होता है ? "

मौना," सुनिए ना... मैं कह रही थी कि हमें कुछ और गाय खरीद लेनी चाहिए। हमेशा कोई ना कोई रह ही जाता है। अब तो हमारा काम भी अच्छा चलने लगा है। कुछ और गाय खरीद लेते है ना ? "

ललित," चलो ठीक है, मैं बात करता हूँ इधर उधर। "

मौना," चलिए नाश्ता कर लीजिये। "

नाश्ता कर लेने के बाद...
ललित," मौना, मैं ज़रा पास के गांव में जा रहा हूँ। "

इसके बाद ललित गायों को खरीदने पास के गांव के तबेले में चला गया।

ललित," नमस्ते भाई ! "

गाय बेचने वाला," और दलित भाई, कैसे हो ? "

ललित," बस प्रभु की कृपा से ठीक हूँ। कुछ गाय खरीदनी थी इसलिए यहाँ चला आया। पहले वाली गाय तो आपने बहुत अच्छी दी थी, एकदम शांत और दूध भी गाड़ा। 

इस बार भी हमें ऐसी ही गाय चाहिए जो शांत हो और जिसका दूध एकदम गाढ़ा हो। "

गाय बेचने वाला," हां हां... क्यों नहीं भाई ? हम तुम्हें अच्छी ही गाय दिखायेंगे। ये देखो, ये हमारे तबेले की सबसे अच्छी नस्ल है। ये शांत भी है और दूध भी गाढा देती है। "

ललित ने गाय के सर पर हाथ रखा। गाय एक दम शांत थी।

गाय बेचने वाला," रुकिए, मैं आपके सामने इसका दूध निकलवा कर दिखाता हूँ। "

गाय बेचने वाला (आवाज लगाते हुए)," राजू... झींगा, अरे ! कहां मर गये दोनों ? दोनों भाई किसी काम के नहीं। "

राजू और झींगा गायों के तबेले में रखे हुए भूसे के ढेर पर लेटे हुए आपस में बात कर रहे थे।

झींगा," ओय राजू ! यार तुझे मालिक बुला रहे हैं। "

राजू," नहीं झींगा, तुझे बुला रहे हैं। "

झींगा," बोला ना तुझे बुला रहे हैं। मैं तुझसे बड़ा हूँ, तू जा। "

राजू," तू सिर्फ मुझसे 1 मिनट बड़ा है। समझा..? ज्यादा धौंस मत जमा। तेरे से पहले अगर मैं आ जाता तो आज मैं बड़ा होता समझा..? "


इतने में उनके मालिक आ जाता है।

मालिक (गाय बेचने वाला)," क्या रे ! तुम दोनों कामचोरों को ज़रा काम के लिए क्या बोलो तो तुम्हें मौत आ जाती है ? 

राजू, ज़रा दूध निकाल उस गाय का और मालिक तुम तबेले की सफाई करो। "

मालिक," मालिक, उसे तो आपने दूध निकालने का काम दिया और मुझे सफाई का काम दे रहे हैं। "

मालिक," तू चिंता मत कर, उसके बाद वो भैसों को नहलाएगा। अब तो खुश हो ? "

राजू ने तबेले वाले को एक लौटे में दूध निकाल कर दिया।

ललित," हाँ भैया, दूध तो बढ़िया है और स्वादिष्ट भी लग रहा है। तो ये गाय तय रही। "

ललित ," ले बिरजू, ज़रा तू भी चख। "

बिरजू," हाँ मालिक, ये तो वाकई बढ़िया है। "

इसके बाद ललित और बिरजू दोनों घर जाने लगे। रास्ते में अचानक मौसम खराब हो गया। ललित और बिरजू गाय और उसके बछड़े को लेकर भागने लगे। 

घर पहुँच कर...
ललित," बिरजू, तू गाय और बछड़े को तबेले में बात दे। "

बिरजू," ठीक है मालिक। "


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बिरजू गाय बांधने के लिए तबेले में जाता है। थोड़ी ही देर में वह भागता भागता ललित के पास आता है।

बिरजू," मालिक... मालिक, बछड़ा नहीं मिल रहा है। "

ललित ," ये क्या बोल रहे हो ? बछड़ा कहां गया ? "

बिरजू," मालिक, लगता है आते वक्त तूफान में वो मेरे हाथ से छूट गया। "

ललित," मौना तुम इनको देखो, मैं उसको लेकर आता हूँ। "

मौना," सुनिए जी... मौसम धीरे धीरे खराब हो रहा है, आप मत जाईये। "

ललित," तुम कैसी बात कर रही हो ? वो गाय मेरे भरोसे आई है और मैं उसके बच्चे को मरने के लिए छोड़ दूँ। "

मौना," तो आज बिरजू को भी लेके जाइए। "

ललित," अगर हम दोनों चले गए तो तुम्हारे ऊपर सारा काम आ जायेगा। तुम परेशान मत हो, मैं उसे जल्दी लेकर आ जाऊंगा। "


इसके बाद ललित बछड़े को ढूंढने चला गया। वो उसी रास्ते पर चलने लगा जहाँ से वो आया था। कुछ दूरी पर उसे गाय की आवाज आने लगी। 

ललित तुरंत उस आवाज़ का पीछा करने लगा। वह देखता है कि एक गाय और उसके सामने उसका बछड़ा उसी की ओर आ रहे हैं। ललित बछड़े को देखते ही खु़श हो गया। 

ललित ने जैसे ही बछड़े को पकड़ा और जाने लगा वैसे ही वो गाय रुक गई। ललित को थोड़ा अजीब लगा।

ललित," लगता है तुम भी इस बछड़े की तरह यहाँ खो गई हो। चलो, मेरे साथ चलो। "

ललित दोनों को लेकर घर आ गया। 

मौना," ये क्या जी..? आप तो बछड़ा लाने गए थे, ये गाय भी साथ में ले आए। "

ललित," जब मैं जंगल गया तो मैंने देखा कि ये गाय हमारे बछड़े के साथ मेरी तरफ आ रही है। इस गाय ने हमारे बछड़े की सुरक्षा की है तो इसकी सुरक्षा करना भी मेरा दायित्व बनता है। 

मैं कल ही कोतवाल के पास जाकर इस गाय के बारे में बता दूंगा। किसी की होगी तो लेने आ जायेगा। इससे ज्यादा क्या कर सकता हूँ ? तब तक ये खा लेगी हमारी गायों के साथ थोड़ा बहुत चारा। "

ललित खाना खाकर सो गया।

अगले दिन...
ललित," बिरजू, जल्दी आ। "

ललित ," मौना, बाल्टियां रखवा दी ? "

मौना," हां, रखवा दी है। "

ललित और बिरजू दोनों गाय से दूध निकालने लग गए।

बिरजू," भैया वो देखिये, वो बछड़ा उस गाय के पास चला गया। "

ललित," रहने दे, कोई बात नहीं। जब दूध नहीं मिलेगा वहाँ तो खुद ही आ जाएगा। बच्चा है ना, भूख लगी होगी। 

अच्छा सुन... इसके बाद तू उसे उसकी माँ के पास थोड़ी देर छोड़ देना, थोड़ा पेट भर जायेगा उसका। "

ललित और बिरजू दोनों ने गाय का दूध निकाला।

गांव के लोग फिर दूध लेने के लिए इकट्ठा होने लगे।

मौना," आज कितना चाहिए ? "

बूढ़ा," बेटा, एक किलो दे दो। बहुत दिन हो गए गाजर का हलवा खाया हुए। तुम्हारी चाची ने कहा है कि अगर खाना है तो दूध लेकर आना पड़ेगा। "

मौना," हाँ चाचाजी, आज आपको गाजर का हलवा खाने को जरूर मिलेगा क्योंकि हम एक और गाय लेकर आ गए हैं। "

बूढ़ा," बढ़िया... अब कोई खाली हाथ नहीं जाएगा। "


दोनों हंसने लगे। इसके बाद सब चले गये।

बिरजू," भैया, अब हम जायें ? "

ललित," हाँ ठीक है, तुम जाओ। "

इसके बाद बिरजू वहां से चला जाता है। थोड़ी देर बाद ललित वापस तबेले में जाता है।

ललित," हे भगवान ! शायद वो इस बच्चे को बांधना भूल गया।
वो बछडे के पास गया। उसने देखा कि वो दूध पी रही है।

ललित," लगता है इसका कुछ समय पहले ही बच्चा हुआ है। अब भगवान करे जल्दी से उसके मालिक का पता चल जाए।
इसका बच्चा भी इसका इंतजार कर रहा होगा। "

मौना," सुनिए... जया दीदी ने दूध मंगाया है। थोड़ा कम पड़ रहा है। आप इससे थोड़ा दूध निकाल लीजिये। उनके घर में भोज का आयोजन है। "

ललित," ये तो काफी देर से दूध पी रहा है। मुझे नहीं लगता कि ज्यादा बचा होगा। देखता हूँ एक बार निकाल के। "

ललित ने दूध निकालना शुरू किया।

ललित," अच्छा सुनो... कोई बर्तन देना। "

मौना," बर्तन तो सारे भरे हैं। आप ऐसा कीजिये... तब तक इस बाल्टी में दूध निकाल लीजिये। "

ललित," इससे छोटा नहीं मिला कोई ? "

मौना," चला लीजिये ना इससे काम अभी, हम काम कर रहे हैं। "

ललित," ठीक। "

ललित ने जैसे ही दूध निकालना शुरू किया, उस गाय से खुद ही दूध निकालना शुरू हो गया। ललित कुछ सोच ही नहीं पा रहा था। बाल्टी पूरी भर गई और दूध नीचे गिरने लगा।

ललित," बंद हो जा... बंद हो जा, रुक जा मेरी माँ। "

अचानक दूध आना बंद हो गया। फिर से ललित ने निकालने की कोशिश की। दूध फिर से आना शुरू हो गया। "

ललित," बंद हो जाओ। "

दूध आना बंद हो गया।

ललित," जल्दी से अंदर जाकर बाल्टी लेकर आओ। अरे मोना ! देखो कमाल हो गया। ये लो।"

ललित दूध से भरी हुई बाल्टी को मौना को पकड़ाता है।

मौना," अरे ! ये तो बहुत ज्यादा है। लगता है कुछ दिनों पहले ही इसका बच्चा हुआ है। "

ललित," इस गाय में कुछ तो बात है। तुम्हें पता है, इससे दूध आना बंद नहीं हो रहा था और जब मैंने कहा 'बंद हो जा' तो बंद हो गया ? "

मौना," सुनिए जी... मुझे तो लगता है ईश्वर की कृपा है। वरना इस तूफान में पहले तो इसने हमारे बछड़े को बचाया और अब इसका इस तरह दूध देना। 


मुझे लगता है प्रभु की कृपा है। सुनिए जी... ये बात आप किसी को मत बताईएगा। "

ललित," लेकिन ये हमारी गाय नहीं है। कभी भी इसका मालिक इसे लेने आ सकता है। "

मौना," लेकिन जब तक इसका मालिक नहीं आता तब तक हम इसकी देखभाल कर लेते हैं। "

ललित," ठीक है। "

मौना," एक बार दोबारा देखते हैं, ये सच में चमत्कार है भी या
नहीं ? "

ललित," चलो। "

ललित ने दूध निकालना शुरू किया। दूध अपने आप आना शुरू हो गया। मौना बर्तन लाती गई। बर्तन भरते गए। इस तरह मौना ने घर के सारे बर्तन भरवा दिए। 

मौना," इसे रोकने के लिए बोलिए आप। "

ललित," हे गाय माता ! रुक जाईये। "

गाय रुक गयी।

ललित," आपके लिए रोटी लाया हूँ। आप ये खा लो। लगता है... बड़ी समझदार है। "

मौना," सुनिए जी... क्यों ना हम आस पास के गांव में अपनी कुछ शाखाएं खोल ले ? अब दूर दूर के गांव वाले तो हमारे घर तक नहीं आ सकते ना, तो हम उनके पास चले जाते हैं। 

और वैसे भी इतने दिन हो गए हैं, अभी तक कोई इस गाय को लेने नहीं आया। मैं तो कहती हूँ इसे प्रभु का आशीर्वाद समझिये और उसका सही इस्तेमाल कीजिये। "


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ललित," मुझे क्यों लग रहा है कि तुम्हारे मन में कुछ ज्यादा ही लालच आ रहा ? "

मौना," कैसा लालच..? जो इंसान परिस्थिति को स्वयं के अनुरूप नहीं ढाले, परिस्थितियां उसके विपरीत हो जाती है। और मैं तो बस घर आई लक्ष्मी का स्वागत कर रही हूँ। अब आप ही बताइए, कुछ गलत कर रही हूँ क्या ? "

ललित," हाँ, तुम तो देवी हो। तुम्हें सब पता होता है। लक्ष्मी माता का उठना बैठना जो है तुम्हारे साथ... क्यों ? "

मौना," आपको तो कुछ नहीं पता। "

इसके बाद ललित जगह जगह अपनी दूध की दुकान खोलनी शुरू कर देता है और देखते ही देखते ललित का काम चलने लगता है। ललित एक बड़ा घर बना लेता है।


एक दिन ललित नोटों की गड्डियों को गिन रहा होता है।

मौना," अब ये सब बंद कर दीजिए। कितना काम करेंगे ? चलिए बंद करिए। "

ललित," ठीक है, लो कर दिया। कभी कभी सोचता हूँ कि एक वो दिन था जब हम सामान्य जीवन बिताया करते थे और एक आज का दिन है। सब प्रभु की कृपा है। "

मौना," मैंने तो कहा ही था आपसे। देखिये जिसे आप लालच कह रहे थे आखिर समझदारी निकली ना। "

ललित," सही कहा तुमने। अगर उस दिन वो गाय हमें नहीं मिलती तो आज भी हम वही सब कर रहे होते। "

मौना," लेकिन ध्यान रखना... वो किसी की नजरों में ना आ पाए वरना कोई भी उसे चुरा सकता है। "

मौना," बिरजू, कहा गया ? दूध गर्म किया या नहीं ? "

बिरजू," लाता हूँ दीदी। लीजिये दीदी। "

मौना," ठीक है, अब तू जा। "

इसके बाद मोना और ललित सो गए। रात को तबेले में आग लग जाती है। सारी गाय चिल्लाने लगती हैं। ललित तुरंत उठकर बिरजू को आवाज देता है। 

बिरजू नींद से तुरंत उठकर वहाँ पानी डालने लगता है। थोड़ी देर में सब ठीक हो जाता है। ललित गायों को दूसरी जगह ले जा रहा होता है।

तभी वो देखता है कि जादुई गाय उनमें नजर नहीं आ रही। ललित मौना को सब बता देता है। 

मौना," अब क्या करेंगे ? हम दूध कैसे पहुँचाएंगे दुकानों में ? "

ललित," मैं ऐसा करता हूँ... कुछ समय के लिए दुकानें बंद कर देता हूँ। "

मौना," ठीक है, यही सही रहेगा। ललित सब जगह ढूँढता है।
पूरी रात बीत जाती है। 

मौना," कुछ तो खा लीजिये। "

ललित," कैसे खा लूं, तुम ही बताओ ? पता नहीं वो कहाँ चली गयी ? उसकी वजह से आज हम ये जिंदगी जी पा रहे हैं और आज जब उसकी कोई खबर नहीं मिल पा रही है तो तुम चाहती हो कि ये सब जानने के बाद भी मैं चैन से खाना खा लूं। "

ललित पूरा दिन उसे ढूंढता है लेकिन वो गाय नहीं मिलती। थककर ललित शाम को घर वापस आ जाता है। मौना ललित के लिए पानी लाती है लेकिन तब तक वहाँ एक बूढ़ी अम्मा आ जाती है। 

अम्मा," क्या हुआ ललित बेटा, सब ठीक है ? "

ललित," नहीं अम्मा, मेरी गाय कहीं चली गयी है। पता नहीं कैसी होगी ? "

अम्मा," बेटा, तू चिंता मत कर। पशु अपने मालिक से ज्यादा देर दूर नहीं रह पाते। वो जल्दी ही वापस आ जाएगी। "

ललित," बस भगवान करे ऐसा ही हो जाए। "


अम्मा," चल अब मैं चलती हूँ। फिक्र मत कर, सब ठीक हो जाएगा। "

मौना," कुछ तो खा लीजिए। इस तरह बिना खाये आप कब तक उसे ढूंढ़ते रहेंगे ? आप कमजोर हो गए तो फिर हमारी लाड़ो को कौन ढूंढेगा ? "

ललित खाना नहीं खाता। वो पानी पीता है और घर के दरवाजे पर बैठकर अपनी गाय के घर आने का इंतजार करता रहता है। पूरा दिन थक जाने के कारण ललित को नींद आ जाती है। 

ललित सपना देखता है कि ललित अपनी गाय को ढूंढ रहा है।

सपने में...
ललित," लाड़ो, कहाँ है तू ? जल्दी आ जा घर। तभी लाडो उसे कोहरे में से आते हुए दिख रही होती है। उसके गले की घंटी बज रही है और वो धीरे धीरे उसके पास आ रही है। 

जैसे ही वो गाय को हाथ लगाता है, उसकी आँख खुल जाती हैं। वो देखता है कि गाय उसके पास बैठी है। वो खुश हो जाता है।

ललित," मौना, हमारी लाड़ो आ गयी। "

मौना," देखिये सब ठीक हो गया ना, चलिए अब अंदर आ जाइए और कुछ खा लीजिये। "

मौना ," बिरजू, तुम इसे तबेले में बांध‌ दो। "

ललित," नहीं, मैं लेजाऊंगा। "

ललित उसे तबेले में बांधता है। उसके सामने ललित घास रखता है और पानी भी रखता है।

ललित," आज के बाद तुम कहीं मत जाना। तुम्हें पता है मैं कितना डर गया था ? ये दुनिया अच्छी नहीं है। यहाँ लालची मतलब ही लोग भरे पड़े हैं। 

कौन जाने कब तुम्हें चुरा ले जाये ? वादा करो... तुम कभी ऐसा दोबारा नहीं करोगी। "

गायें आवाज कर देती है।

ललित," अब तुम खाओ, मैं भी चला खाना खाने। "

आधीरात के समय एक आदमी कंबल ओढकर गाय चुराने की कोशिश करता है। गाय ज़ोर ज़ोर से आवाज़ निकालने लगती है। 

ललित तुरंत भागकर तबेले में पहुंचता है। आदमी को गाय चुराते देख ललित उसे पकड़ने की कोशिश करता है। 

ललित के हाथों में कंबल आ जाता है। ललित कंबल को खींचता है लेकिन वो आदमी भाग जाता है। इस बार ललित ने लाडो को एक सुरक्षित कमरे में बंद कर दिया। 


मौना," क्या हुआ जी..? वो आवाज़... लाड़ो ठीक तो है ना ? "

ललित," कोई लाड़ो को चुराने आया था। "

मौना," कहीं तबेले में आग लगाने वाला और लाड़ो को चुराने आने वाला आदमी दोनों एक तो नहीं ? ये कंबल किसका है ? "

ललित," ये कंबल उसी चोर का है। "

अगले दिन ललित गाय के पास जाता है और दूध निकालना शुरू करता है।

ललित," बिरजू सुनो... आज तुम लाड़ो को जंगल चराने ले जाना। "

बिरज," ठीक है मालिक। "

ललित," वैसे तुम कल कहाँ थे ? "

बिरजू ," कब मालिक ? "

ललित," जब रात को ज़ोर ज़ोर से तबेले से आवाजें आ रही थी। "

ललित," कौन सी आवाज़ मालिक ? मैंने तो कोई आवाज नहीं सुनी। लगता है, मैं गहरी नींद में रहा होऊंगा उस वक्त। "

ललित बिरजू के पीछे जाता है और गले में जो माला थी उसे निकालने को कहता है।

ललित ," ये बताओ बिरजू... यह धागा तुम्हारी माला के हुक में कैसे आ गया ? "

बिरजू ," मालिक, कपड़े निकालते वक्त कई बार मेरी इस माला में कपड़े फंस जाते हैं। शायद इसी तरह ये धागा भी फंस गया होगा। "

ललित," ठीक है। "

ललित अंदर गया और वो कम्बल लाया।

ललित," तुम्हें कम्बल और ये धागा दोनों एक जैसा ही नहीं लगता ? और इस कोने में धागा खींचा हुआ भी है और इस धागे का रंग भी इस कपड़े के जैसा ही है। ये कोई इत्तेफ़ाक तो नहीं लगता। "

बिरजू," मालिक, माफ़ कर दीजिये। ये सब मैंने मजबूरी में आकर किया है। "

ललित ," कैसी मजबूरी ? "

बिरजू," मालिक, मैंने कुछ लोगों से कर्ज लिया था अपनी बहन की शादी के लिए। कर्ज न चुका पाने की वजह से उन्होंने मुझे मारने की धमकियां दी। 

मैंने उस दिन आपको और दीदी को बात करते सुन लिया था। मैंने सोचा कि मैं वो गाय बेच दूँ। इससे मेरा कर्जा भी उतर जाएगा।

ललित," कितना कर्ज लिया था उनसे तुमने ? "

बिरजू," ₹50,000। "

ललित," शर्म नहीं आती ? जहाँ तुझे हमेशा रहने और खाने को मिला, वहीं चोरी की तूने। "

बिरजू," मुझे माफ़ कर दीजिये। वो मुझे मार डालेंगे, इस डर से मैंने ऐसा किया। "

ललित अंदर गया और पैसे लेकर आया।


ललित," जा और उन्हें ये पैसे दे। तूने ये कर अपनी बहन के लिए लिया था। अगर यहां कोई और होता तो तुझे जेल भिजवा देता। "

बिरजू में सब सुनकर चला जाता है। ललित के पास वही अम्मा आती है।

ललित," अम्मा आप ? "


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अम्मा," बेटा क्या हुआ, तू बड़ा परेशान लग रहा है ? परेशान मत हो बेटा, वो गाय तेरे पुण्य कर्मों का ही फल है जो तुझे उस जैसी गाय मिली। 

मैंने देखा कि किस तरह तुने उस तूफान में अपनी परवाह ना करते हुए उस बछड़े की जान बचाने का फैसला लिया और जंगल में पशु के प्रति तेरा यही प्रेम देख मैंने इस गाय के लिए तुझे चुना। 

अब मेरी उम्र हो गयी है, इसका ध्यान नहीं रख सकती। इसीलिए मैंने उस दिन तुझे वो गाय सौंप दी थी। अब सारी चिंताएं त्याग दे। 
और हाँ... जिस दिन तुझे तेरी ही तरह कोई नेक इंसान मिले तो उसे ये गाय दे देना। ये गाय कई सालों तक जिंदा रह सकती है और उस घर को संपन्न रखती है। "

ललित," धन्यवाद अम्मा ! मेरी जिंदगी में इतनी खुशियां भर देने के लिए। "

अब ललित समझ गया कि ये अम्मा मेरी मदद करने को आई थीं। उसके बाद ललित ने अपने तबेले में कई बेरोज़गारों को रोजगार दिया और एक नेक इंसान की तलाश में भी लग गया।


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Pradeep Kushwah

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